मंदिर-मस्जिद से बड़ा है रोज़ी-रोटी का सवाल
शुक्रवार, 23 अगस्त, 2013 को 09:28
विश्व हिंदू परिषद (विहिप) 25
अगस्त से चौरासी कोसी परिक्रमा करने पर उतारू है और उत्तर प्रदेश की अखिलेश
यादव की सरकार उसे रोकने पर. दोनों तरफ से बढ़चढ़ कर बयान दिए जा रहे हैं.
उत्तर प्रदेश में साम्प्रदायिकता का माहौल गरमाने
की कोशिश हो रही है. विहिप को अचानक याद आया कि अयोध्या में चौरासी कोसी
परिक्रमा भी होती है.विहिप इस देश के हिंदुओं की सरपरस्त और समाजवादी पार्टी और उसकी सरकार मुसलमानों की रहनुमा बनकर आमने-सामने खड़ी हैं. बिना इसकी परवाह किए कि दरअसल दोनों समुदायों के लोग चाहते क्या हैं.
मुसलमानों को लुभाने की कोशिश
मुलायम सिंह यादव और उनकी पार्टी इस समय वह सब कुछ करने के लिए तैयार है जिससे उसे मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी मान लिया जाए.इसके लिए वह लालकृष्ण आडवाणी को धर्मनिरपेक्ष मानने और अशोक सिंघल और उनकी संत बिरादरी से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार है.
मुसलमानों का हितैषी बनना चाहते हैं मुलायम सिंह यादव.
अशोक सिंघल ने उनकी मुँहमांगी मुराद पूरी कर दी है. इसलिए मुलायम और उनकी सरकार के रुख के पीछे की राजनीति तो समझ में आती है. सवाल है कि विहिप ऐसा क्यों कर रही है?
मक़सद धार्मिक नहीं राजनीतिक
अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा की परम्परा पता नहीं कितने सालों से चल रही है. उसका समय अप्रैल से मई के बीच का है. जाहिर है कि विहिप के इस कदम के पीछे धर्म नहीं राजनीति है.अशोक सिंघल जो कर रहे हैं उसका एक ही मकसद नज़र आता है. राजनीतिक फायदे के लिए राम मंदिर के मुद्दे को एक बार फिर गरमाना. पर अशोक सिंघल शायद भूल गए हैं कि राम मंदिर मुद्दे की काठ हांडी दोबारा नहीं चढ़ने वाली.
इस मुद्दे पर पूरा संघ परिवार अपनी साख गंवा चुका है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिससे भाजपा अब भागना चाहती है. पर उसकी समस्या यह है कि वह इससे भागते हुए दिखना नहीं चाहती.
पिछले दिनों अमरावती में संघ परिवार के विभिन्न सगंठनों के वरिष्ठ नेताओं की बैठक में इस पर आम राय थी कि इस चुनाव में अयोध्या का मुद्दा नहीं उठाना चाहिए. सबका मानना था कि इससे भाजपा का सुशासन का मुद्दा और कांग्रेस की सरकार के भ्रष्टाचार, महंगाई, आर्थिक बदहाली और नीतिगत लकवे जैसे मुद्दे पीछे चले जाएंगे.
विहिप की प्रस्तावित परिक्रमा साख हासिल करने की कोशिश लगती है.
विहिप की यह प्रस्तावित परिक्रमा उसकी खोई हुई साख लौटा पाएगी इस पर अशोक सिंघल के अलावा शायद ही किसी को भरोसा हो.पर इतना जरूर तय है कि इससे भाजपा का भारी नुकसान होने वाला है.
मतदाता सुशासन चाहता है
विहिप का यह कदम नरेंद्र मोदी की सारी मेहनत पर पानी फेर सकता है.
विहिप को शायद इसका एहसास भी नहीं है कि देश का मतदाता इस समय धर्म की राजनीति नहीं सुशासन की बातें सुनना चाहता है. खासतौर से जिस नए युवा मतदाता को नरेन्द्र मोदी भाजपा से जोड़ना चाहते हैं उसे अशोक सिंघल की राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं है.
मुलायम सिंह यादव और अशोक सिंघल भूल रहे हैं कि यह 1989 से 1992 का दौर नहीं है. उत्तर प्रदेश का मतदाता चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान उस दौर की राजनीति से आगे निकल चुका है. मंदिर-मस्जिद से रोज़ी-रोटी के सवाल बड़े हो गए हैं. मंदिर-मस्जिद के नाम पर वह अपनी रोज़ी-रोटी कुर्बान करने को तैयार नहीं है.
इस बात को मुलायम सिंह यादव और अशोक सिंघल समझने को तैयार नहीं हैं. कहते हैं कि जो इतिहास से सबक नहीं सीखते इतिहास उन्हें सबक सिखाता है.
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