Wednesday 28 August 2013

एक हाथ से डिग्री उठाई, दूसरे हाथ से बेटी

एक हाथ से डिग्री उठाई, दूसरे हाथ से बेटी

 बुधवार, 28 अगस्त, 2013 को 08:02
उत्तराखंड
आपका घर बाढ़ में बस डूबने ही वाला हो और आपके पास वहां से निकलने के लिए बस एक मिनट हो तो आप क्या बचाएंगे?
25 साल की राजसी कुमार के सामने भी यही मुश्किल थी.
लेकिन उनका चुनाव बेहद सरल था. सबसे पहले उन्होंने अपनी बेटी को उठाया और फिर अपना अनमोल सर्टिफिकेट.
क्लिक करें उत्तरकाशी ज़िले के डिडसारी गांव में राजसी अकेली महिला हैं जिनके पास एमए की डिग्री है.
उनका सपना था कि वे पढ़-लिख कर नौकरी करें और अपने परिवार की गरीबी दूर करें, लेकिन उत्तराखंड में आई बाढ़ ने उनके सपनों और महत्वाकांक्षाओं को चकनाचूर कर दिया.

बिखरा सपना

राजसी बताती हैं, "अभी वहां इंटरनल एक्ज़ाम हो रहे हैं. मेरी पूरी तैयारी है लेकिन परीक्षा दे नहीं पा रही. मैंने इसके लिए तीन सप्ताह तक ट्यूटोरियल क्लास भी की. कोई कसर नहीं छोड़ी, लेकिन अब इन सबका क्या फायदा?"
उन्होंने आगे कहा, "काश, सब कुछ ठीक हो पाता. सड़कों पर तो चलना मुश्किल है. इस पर एक बच्चे को लेकर चलना तो और भी कठिन है. हालांकि मेरी टीचर और कॉलेज के डायरेक्टर ने मुझसे बात की. लेकिन वे सब जानते हैं कि मैं अपनी बच्ची को अकेला नहीं छोड़ सकती."
राहत शिविर में बच्ची को अकेला छोड़ कर परीक्षा देने जाना राजसी के लिए बेहद मुश्किल है, लेकिन उनके टीचर और कॉलेज डायरेक्टर उनकी परीक्षा बाद में करवाने को तैयार हैं.
उत्तराखंड
हिमालय की केदार घाटी में जो जल प्रलय आया उसमें करीब 6000 लोग मारे गए थे.
हिंदी से एमए डिग्री हासिल करने के बाद राजसी बीएड की परीक्षा की तैयारी कर रही थीं. यह परीक्षा अगस्त के पहले हफ्ते में होने वाली थी. उनको भरोसा था कि इसके बाद जीवन में सब कुछ बदल जाएगा.
राजसी कहती हैं, "एक बार डिग्री मिल जाने के बाद मैं कहीं भी पढ़ा सकती हूं. मुझे छठी, सातवीं और आठवीं के बच्चों को पढ़ाना अच्छा लगता है. मुझे हिंदी और संस्कृत पढ़ाना पसंद है."
वे बताती हैं कि उनकी एक दूर की रिश्तेदार टीचर हैं और एक महीने में 28 हज़ार रुपए कमा रही हैं. उनका परिवार चाहता था कि वो भी टीचर बनें.
राजसी ने कहा, "शिक्षण के काम को समाज में बेहद सम्मान की नज़रों से देखा जाता है और उम्मीद है कि मुझे भी अच्छी तनख्वाह मिलेगी."

बह गया कॉलेज

"जिंदगी रह गई तो मेरे लिए तो सबसे पहले मेरे डॉक्यूमेंट हैं. और कुछ बचाने का समय नहीं था. एक हाथ से मैंने अपनी फाइल दबोची, और दूसरे हाथ से अपनी बच्ची को गोद में उठाया. फाइल में मेरी पूरी डिग्री और डॉक्यूमेंट्स थे. अगर पढ़ाई का कोई प्रमाण ही ना बचे, तो मेरे जीवन का क्या अर्थ रह जाएगा."
राजसी कुमारः उत्तराखंड आपदा पीड़ित
राजसी कुमार ने बताया, "मैं जिस कॉलेज में पढ़ी, वह तबाह हो गया, बाढ़ में बह गया."
जून में आई क्लिक करें प्रलंयकारी बाढ़ में उत्तरकाशी में बचे हज़ारों स्थानीय लोगों में से एक राजसी ने बताया कि 16 जून की रात उनके गांव डिडसारी में लोगों ने पहाड़ों पर ज़ोरदार धमाका सुना. लगातार मूसलाधार बारिश हो रही थी.
राजसी का परिवार और आसपास के लोग रात दो बजे छोटे-छोटे बच्चों को लेकर पहाड़ पर आ गए. वो बताती हैं कि उस ऊंची जगह से हम सब कुछ सामान्य होने का इंतज़ार करते रहे और नीचे घर बाढ़ के पानी में बहते रहे.
उन्होंने बताया, "मैं कंधे से बच्ची को लटकाए अपने घर को डूबता देखती रही. हम बर्बाद हो चुके थे."
उत्तराखंड
बारिश और भूस्खलन से सड़कें बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गईं.
दूसरे 20 घरों के साथ राजसी का घर भी क्लिक करें तहस नहस हो चुका था. पढ़ाई-लिखाई का सामान, कपड़े, राशन सब खत्म हो गया था.
लेकिन इस आपदा में राजसी ने अपने लिए दो चीजें बचाई जो उनके लिए अनमोल थीं यानी बेटी और अपनी डिग्री.
राजसी बताती हैं, " जिंदगी बच गई तो मेरे लिए तो सबसे महत्वपूर्ण मेरे डॉक्यूमेंट हैं. और कुछ बचाने का समय नहीं था. एक हाथ से मैंने अपनी फाइल दबोची और दूसरे हाथ से अपनी बच्ची को गोद में उठाया. फाइल में मेरी डिग्री और डॉक्यूमेंट्स थे. अगर पढ़ाई का कोई प्रमाण ही नहीं बचता तो मेरे जीवन का क्या अर्थ रह जाता."
उन्होंने आगे कहा, "फिर तो मैं भी अपनी सास की तरह ही घर में बैठी रहती, कोई मुझे सुनने वाला नहीं होता. मेरे अलावा इतनी ऊंची शिक्षा किसी ने हासिल नहीं की है. न तो मेरे पति ने और न ही गांव की किसी और औरत ने. यहां तक कि मेरे भाई-बहनों ने भी आठवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी."
क्लिक करें डिडसारी में बाढ़ के बाद बेघर हो चुके 17 गांववालों के साथ राजसी कुमार ने पहाड़ पर स्थित 4 कमरों वाले स्कूल में पनाह ले रखी है.

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