Saturday 31 August 2013

केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष

केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष

Updated on: Tue, 19 Mar 2013 11:27 AM (IST)
Indian economy
केवल सात माह के आयात लायक विदेशी मुद्रा शेष
नई दिल्ली [अंशुमान तिवारी]। भारतीय अर्थव्यवस्था की सबसे खतरनाक दरार और चौड़ी हो गई है। देश के पास केवल सात महीने के आयात के लायक विदेशी मुद्रा भंडार बचा है, जो पिछले 17 साल का सबसे निचला स्तर है। भारत का विदेशी मुद्रा भंडार अब ब्रिक देशों यानी ब्राजील, रूस और चीन में न्यूनतम है। डॉलर के मुकाबले रुपये में गिरावट का अगला स्तर 56 रुपये आंका जा रहा है। ग्लोबल निवेशक मान रहे हैं कि इस साल यदि अंतरराष्ट्रीय बाजारों की हालत और बिगड़ी तो डॉलर-रुपया विनिमय दर गिरकर 60 रुपया प्रति डॉलर तक पहुंच सकती है।
भारत का विदेशी मुद्रा कोष अब जोखिम के बिंदु के बिल्कुल करीब है। 291 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार केवल सात महीने के आयात के लिए पर्याप्त है। भारत की तुलना में ब्राजील व रूस के पास 17 माह और चीन के पास 21 महीने के आयात लायक विदेशी मुद्रा है। विदेशी मुद्रा के मोर्चे पर जोखिम का यह स्तर इससे पहले 1996 में आया था। हालात 1991 जितने खराब नहीं हैं, जब केवल तीन सप्ताह के आयात के लायक विदेशी मुद्रा बची थी। लेकिन मौजूदा परिस्थितियों और ग्लोबल अर्थव्यवस्था से भारत के जुड़ाव को देखते हुए जोखिम 1991 की तुलना में ज्यादा बड़ा है। अंतरराष्ट्रीय बैंकरों का आकलन है कि भारत में विदेशी मुद्रा की आवक और निकासी का अंतर बताने वाला चालू खाते का घाटा इस साल जीडीपी [सकल घरेलू उत्पाद] के अनुपात में पांच फीसद तक जा सकता है। यह आंकड़ा 2012 में 4.2 फीसद था। इसलिए रुपये को लेकर आशंकाओं का सूचकांक चरम पर है।
रिजर्व बैंक की यह मौद्रिक नीति बजट से ज्यादा संवेदनशील है। केंद्रीय बैंक के लिए महंगाई से ज्यादा बड़ी चुनौती गिरता रुपया है। कमजोर घरेलू मुद्रा महंगाई को बढ़ाने में सहायक बन रही है। ब्याज दर में जोरदार कमी करने में रिजर्व बैंक की ताजा हिचक यह भी हो सकती है कि ज्यादा पूंजी आयात बढ़ाने में मददगार होगी, जो रुपये की कमजोरी में इजाफा करेगी। केंद्रीय बैंक को मंगलवार को पेश होने वाली इस नीति की मध्य तिमाही समीक्षा में बाजार को यह संकेत देना है कि रुपया और नहीं गिरेगा, गिरावट की धारणा से शेयर बाजार में विदेशी निवेश कम होगा। इससे रुपये में गिरावट का दुष्चक्र शुरू हो जाएगा।
महंगाई के मामले में स्थिति अब ज्यादा पेचीदा है। रुपये में लगातार तेज गिरावट के कारण आयातित महंगाई सबसे बड़ी चुनौती है। पेट्रो उत्पाद, खाद्य तेल, धातुएं, चीनी, कपास सहित कम से कम एक दर्जन जिंस ऐसे हैं, घरेलू बाजार में जिनकी कीमतें अंतरराष्ट्रीय मूल्यों से निर्धारित होती हैं। रुपये में गिरावट इन्हें महंगा करती है। मेरिल लिंच की एक ताजा रिपोर्ट कहती है कि रुपये में 10 फीसद की गिरावट से महंगाई एक प्रतिशत बढ़ती है। इसलिए महंगाई का प्रबंधन अब दरअसल विदेशी मुद्रा के प्रबंधन का हिस्सा हो गया है।
विशेषज्ञ मान रहे हैं कि रिजर्व बैंक रुपये की गिरावट को थामने के लिए अब बाजार में ज्यादा डॉलर नहीं छोड़ सकता। क्योंकि मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार के आधार पर डॉलर की कीमत 56 रुपये तक रोकी जा सकती है। यदि अगले कुछ माह में अंतरराष्ट्रीय स्थिति में ऊंच-नीच हुआ तो डॉलर 60 रुपये तक गिर सकता है।
कमजोर रुपये से प्रभावित जिंस
कच्चा तेल, कपास, तिलहन, धात्विक खनिज, बिजली , चीनी, कपड़ा, धातुएं और रसायन
क्यों घटा विदेशी मुद्रा भंडार
1. निर्यात में लगातार गिरावट, शेयर बाजारों में निवेश कम होने से विदेशी मुद्रा की आवक में कमी
2. आयात में रिकॉर्ड बढ़ोतरी और विदेशी निवेशकों की शेयरों में बिकवाली से विदेशी मुद्रा की निकासी बढ़ी
3. आयात-निर्यात का अंतर बताने वाला व्यापार घाटा 182 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर
4. लगभग 110 देशों के साथ भारत का व्यापार संतुलन नकारात्मक यानी आयात ज्यादा निर्यात कम
5. जीडीपी के अनुपात में व्यापार घाटा 11.7 फीसद पर

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