जीडीपी ने दिखाया भारतीय अर्थव्यवस्था को आईना
मुश्किल में इकोनॉमी, विकास दर घटकर 4.4 फीसदी
नई दिल्ली, 30 अगस्त 2013 | अपडेटेड: 20:01 IST
देश की विकास दर मौजूदा कारोबारी साल की पहली तिमाही में घटकर 4.4 फीसदी दर्ज की गई, जो पिछले चार सालों में सबसे कम है.
शुक्रवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक विनिर्माण और खनन क्षेत्र
में खराब प्रदर्शन रहने के कारण विकास दर में गिरावट दर्ज की गई. ताजा दर
वैश्विक वित्तीय संकट के दिनों की 2009 की जनवरी-मार्च तिमाही के बाद सबसे
कम है. विनिर्माण क्षेत्र में 1.2 फीसदी गिरावट रही और खनन क्षेत्र में 2.8
फीसदी गिरावट रही.
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े के मुताबिक कृषि क्षेत्र की विकास दर घटकर 2.7 फीसदी रही, सेवा क्षेत्र में बेहतरीन 9.4 फीसदी विकास दर्ज किया गया.
सीएसओ के मुताबिक स्थिर (2004-05) मूल्यों पर फैक्टर कॉस्ट पर तिमाही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2013-14 की पहली तिमाही के लिए अनुमानित 13.71 लाख करोड़ रुपये रही, जो एक साल पहले समान अवधि में 13.14 लाख करोड़ रुपये थी, जो साल-दर-साल आधार पर 4.4 फीसदी वृद्धि है.
विकास दर इससे पिछली तिमाही में 4.8 फीसदी तथा पिछले साल की समान तिमाही में 5.4 फीसदी थी. भारतीय उद्योग परिसंघ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, 'जीडीपी आंकड़े से स्पष्ट पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती जारी है.' उन्होंने कहा, 'अर्थव्यवस्था पर नीति निर्माताओं द्वारा पूरा ध्यान दिए जाने की जरूरत है.'
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े के मुताबिक कृषि क्षेत्र की विकास दर घटकर 2.7 फीसदी रही, सेवा क्षेत्र में बेहतरीन 9.4 फीसदी विकास दर्ज किया गया.
सीएसओ के मुताबिक स्थिर (2004-05) मूल्यों पर फैक्टर कॉस्ट पर तिमाही सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 2013-14 की पहली तिमाही के लिए अनुमानित 13.71 लाख करोड़ रुपये रही, जो एक साल पहले समान अवधि में 13.14 लाख करोड़ रुपये थी, जो साल-दर-साल आधार पर 4.4 फीसदी वृद्धि है.
विकास दर इससे पिछली तिमाही में 4.8 फीसदी तथा पिछले साल की समान तिमाही में 5.4 फीसदी थी. भारतीय उद्योग परिसंघ के महानिदेशक चंद्रजीत बनर्जी ने कहा, 'जीडीपी आंकड़े से स्पष्ट पता चलता है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती जारी है.' उन्होंने कहा, 'अर्थव्यवस्था पर नीति निर्माताओं द्वारा पूरा ध्यान दिए जाने की जरूरत है.'
जीडीपी ने दिखाया भारतीय अर्थव्यवस्था को आईना
शुक्रवार, 30 अगस्त, 2013 को 19:59 IST तक के समाचार
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अब से कुछ समय बाद भारत में पहली तिमाही के सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी के आँकड़े आने वाले हैं. भारतीय अर्थव्यवस्था पर चिंताओं के बीच देश की कैसी तस्वीर उभर पर आने वाली है. इस पर हमारी पल-पल नज़र रहेगी.
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भारतीय जनता पार्टी देश की मौजूदा आर्थिक स्थिति के लिए यूपीए सरकार को ज़िम्मेदार ठहरा रही है. पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने तो यहाँ तक कह दिया है कि जल्द चुनाव ही इसका निदान है. -
विश्लेषकों का मत यही है कि नए वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आंकड़े निराशाजनक हो सकते हैं.
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"हम तो पहले से कह रहे हैं कि हमें पहली तिमाही से ज़्यादा उम्मीद नहीं है क्योंकि इस दौरान अर्थव्यवस्था में मंदी के संकेत रहे. हमें बस चाढ़े चार से पांच प्रतिशत के बीच विकास दर की उम्मीद है".
-सीआईआई के महानिदेशक चंद्रजीत मुखर्जी
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"आर्थिक विकास के इस दौर में कृषि क्षेत्र में 1 करोड़ 40 लाख नौकरियां और फैक्ट्रियों से 53 लाख नौकरियां जा चुकी थीं."
- कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा -
भारतीय रुपए ने पिछले कुछ दिनों में रिकॉर्ड गिरावट दर्ज की है और मनमोहन सिंह ने इसके लिए बाहरी आर्थिक कारणों को ज़िम्मेदार बताया है.
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बढ़ती महंगाई के बीच सोना भी आम लोगों की पहुँच से दूर होता जा रहा है. सोने की क़ीमत प्रति 10 ग्राम 32 हज़ार से भी ऊपर पहुँच गई है. -
"अंतरराष्ट्रीय स्थिति का रुपए समेत कई मुद्राओं पर असर हुआ है. उदारवादी सुधार व्यवस्था बनी रहेगी और इस संदर्भ में पीछे हटने का सवाल ही नहीं है."
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, संसद को संबोधित करते हुए -
"इस अंतरराष्ट्रीय स्थिति में हमें और झटकों के लिए तैयार रहना चाहिए."
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह -
"प्रधानमंत्री नाराज़ नहीं थे, वे केवल आक्रामक थे. क्योंकि ये समय कमज़ोरी का नहीं है." - विदेशमंत्री सलमान खुर्शीद
"प्रधानमत्री ने राज्यसभा में जो रूप दिखाया, हम उनसे आहत हुए. यदि लोगों को इस सरकार से मुक्ति मिलती है तो अच्छा होगा." - पूर्व उपप्रधानमंत्री भाजपा के लालकृष्ण आडवाणी
"आपका सामान बाहर कोई खरीदने को तैयार नहीं है. तो आप घरेलू बाज़ार में अपनी मांग पैदा करें. घरेलू बाज़ार में नौकरियाँ पैदा करें." - सीपीएम के सीताराम यैचुरी -
लेकिन भारत में सबसे ज़्यादा चिंता डॉलर के मुक़ाबले रुपए की गिरती क़ीमत से है. एक समय तो एक डॉलर 69 रुपए के क़रीब पहुँच गया था. हालाँकि अब इसमें कुछ सुधार हुआ है. -
भारतीय अर्थव्यवस्था और गिरते रुपए से आपके जीवन पर क्या असर हो सकता है? प -
2013-14 की पहली तिमाही( अप्रैल-जून) में सकल घरेलू उत्पाद के आंकड़े आ रहे हैं -पिछले वर्ष के 4.8 प्रतिशत के मुकाबले में गत तिमाही में विकास दर 4.4 प्रतिशत रही है. -
कृषि क्षेत्र: इस तिमाही में यह 2.7 प्रतिशत रहा है, पिछले साल इसी तिमाही में विकास दर 2.9 प्रतिशत थी.
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निर्माण क्षेत्र में इस तिमाही में विकास दर निगेटिव में चली गई है और -1.2 प्रतिशत है जबकि पिछले साल इस तिमाही में ये 2.6 प्रतिशत थी -
2013 की पहली तिमाही में ट्रांसपोर्ट, संचार, ट्रेड और हटल क्षेत्र में विकास दर 3.9 प्रतिशत रही है जबकि खनन क्षेत्र में विकास दर निगेटिव में जाते हुए -2.8 प्रतिशत रही.
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मुझे उम्मीद थी के ये कम से कम 4.8 फ़ीसदी होगा. केकी मिस्त्री, एचडीएफसी के वाइस चेयरमैन एनडीटीवी पर
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सीमेंट क्षेत्र में विकास दर 3.3 प्रतिशत और स्टील क्षेत्र में विकास दर 0.2 प्रतिशत रही है.
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ये इस बात को साफ तौर पर दर्शाता है कि अर्थव्यवस्था धीमेपन की चपेट में है. चंद्रजीत बनर्जी, डॉयरेक्टर जनरल, सीआईआई.
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इस बात की ज़रूरत है कि नीति निर्धारण करने वाले इसकी तरफ पूरी तवज्जों दे. चंद्रजीत बनर्जी, डॉरेक्टर जनरल, सीआईआई
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योजना आयोग के उपाध्यक्ष मांटेक सिंह अहलूवालिया ने टीवी चैनल एनडीटीवी को बताया है - "हमें पता था कि अर्थव्यवस्था के विकास दर के धीमे पड़ने के आसार हैं. निर्माण क्षेत्र कमज़ोर रहा है क्योंकि पूँजी निवेश कम रहा है और हमारा आकलन है कि कई परियोजनाएँ अधर में पड़ी है और इसीलिए इस बारे में कैबिनेट समिति बनाई गई."
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ये बहुत ही कमज़ोर प्रदर्शन है. लेकिन कभी नहीं सोचा था कि पहली तिमाही में इस मामले में किसी तरह की बेहतरी हो सकती है. मांटेक सिंह अहलूवालिया, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, एनडीटीवी पर
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योचना आयोग के उपाध्यक्ष मांटेक अहलूवालिया ने एनडीटीवी को बताया है - "अच्छी बारिश से भी सकल घरेलू उत्पाद पर असर 0.3 प्रतिशत के आसपास ही रहेगा. प्रधानमंत्री का संदेश स्पष्ट है, अर्थव्यवस्था का आधार मजबूत है, बाहरी कारण रहे हैं, ये नहीं कि अंदरूनी कारण नहीं है लेकिन हमें और कई कुछ करना पड़ेगा. उनका ये भी मानना था कि हमें पता है कि क्या करना है."
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आरबीआई और सरकार को मिलकर कोशिश करनी चाहिए कि जो हालात पैदा हो गए हैं उससे बाहर निकलने की कोशिश करनी चाहिए. चंद्रजीत बनर्जी, डॉयरेक्टर जनरल, सीआईआई.
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रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर बिमल जलान ने भारतीय अखबार इक्नॉमिक टाइम्स के बताया है - "पूँजी निवेश के रास्ते में आने वाली हर अड़चन को दूर करना चाहिए. सबसे पहली प्राथमिकता नई परियोजनाओं को शुरु करना और अधर में लटकी हुई परियोजनाओं को पूरा करना होना चाहिए."
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रुपए की गिरती क़ीमत के कारण आम लोगों की क्रय शक्ति पर भी असर पड़ा है. -
डॉलर के मुकाबले कमज़ोर होते रूपए, बाजार में कर्ज़ की कमी, तेज़ ब्याज और निवेश में हो रही देरी की वजह से ये धीमापन आया है. चंद्रजीत बनर्जी, डॉयरेक्टर जनरल, सीआईआई
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लोगों का ख़्याल है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की क़ीमत 60 से 65 के बीच ठीक है. प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि रुपए की कीमत में सुधार से निर्यात को फायदा पहुंचेगा. मांटेक सिंह अहलूवालिया, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, एनडीटीवी पर -
खाद्य पर दी जाने वाली सब्सिडी का बोझ बर्दाश्त किया जा सकता है. मांटेक सिंह अहलूवालिया, योजना आयोग के उपाध्यक्ष, एनडीटीवी पर
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रुपए ने अपनी कीमत खोई, और आज प्रधान मंत्री ने अपनी गरिमा खोई. सुषमा स्वराज, नेता विपक्ष, लोकसभा ने आज सदन में हुई कार्यवाही पर. -
इकॉनॉमिक्स टाइम्स से अपनी प्रतिक्रिया में बैंक ऑफ़ बड़ौदा ने कहा है कि जीडीपी के आँकड़े उम्मीद के मुताबिक़ ही हैं.
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इकॉनॉमिक्स टाइम्स पर स्वामीनाथन अय्यर: मुझे लगता है कि अगली तिमाही और उसके बाद भी स्थितियाँ और विकट होंगी
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वित्त वर्ष 2013 की पहली तिमाही में भारत की आर्थिक विकास दर 4.4 प्रतिशत है.
अहम आर्थिक क्षेत्रों का प्रदर्शन इस प्रकार रहा -
- कृषि क्षेत्र - पिछले साल 2.9, इस बार 2.7 प्रतिशत
- खनन क्षेत्र - पिछले साल 0.4, इस बार -2.8 प्रतिशत
- निर्माण क्षेत्र - पिछले साल -1.0, इस बार -1.2 प्रतिशत
- कंस्ट्रक्शन क्षेत्र - पिछले साल 7.0, इस बार 2.8 प्रतिशत
- ट्रेड, होटल, ट्रांसपोर्ट और संचार - पिछले साल 6.1, इस बार 3.9 प्रतिशत
- वित्त, बीमा, रियल एस्टेट, व्यावसायिक सर्विस - पिछले साल 9.3, इस बार 8.9 प्रतिशत
- सामाजिक और निजी सर्विसेज़ - पिछले साल 8.9, इस बार 9.4 प्रतिशत
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अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आए वित्तीय संकट के बाद ऐसा पहली बार हुआ है भारतीय अर्थव्यवस्था का जीडीपी इतने कम स्तर पर आया है.
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फिक्की के सदस्य सुशील जवार्जका की अर्थव्यवस्था पर राय :
"ये चिंता का विषय है. लोग जानते हैं कि जिस आंकड़े की बात की जा रही है, आर्थिक विकास उससे कम होगा. हम जानते हैं कि उद्योग में सुस्ती है क्योंकि आयात-निर्यात का फर्क बढ़ रहा है, विकास दर घटी है, महंगाई अधिक है और निर्यात में बढ़ोतरी भी नहीं हो रही है. आम आदमी के लिए आने वाले आठ दस महीने बहुत कठिन होंगे. हालांकि मैं कह सकता हूं कि व्यापार और उद्योग जगत में अफ़रा-तफ़री का माहौल नहीं है. लेकिन इसे लेकर चिंता ज़रूर है कि खर्च को कैसे कम करें, मांग को कैसे बढ़ाया जाए.
निर्यात के क्षेत्र में भी रुपए में जो गिरावट की वजह से फायदा हो सकता था वो लाभ लोगों को नहीं मिल पा रहा. खरीदार पहले ही उसे लेकर मोल-तोल कर लेते हैं. आने वाला वक्त और दिक्क्तों का है. तेल के दाम पहले से ही बढ़े हुए हैं उसके आयात की कीमत और ऊपर चली जाएगी जिसका असर महंगाई पर पड़ेगा. मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर में लागत बढ़ जाएगी. भारत की अर्थव्यवस्था का मूल मज़बूत है और रुपए की कीमत कम होने की वजह से भारत का निर्यात भी चीन के मुकाबले कहीं ठहरना चाहिए." -
इसके साथ ही जीडीपी के आँकड़ों पर हमारी विशेष पेशकश समाप्त होती है. पंकज प्रियदर्शी को सभी सहयोगियों के साथ अनुमति दीजिए और अर्थव्यवस्था से जुड़ी हर अहम ख़बर के लिए हमारी वेबसाइट पर आते रहिए. धन्यवाद.
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