उत्तराखंड-केदारनाथ : गांव जो एक दिन विधवाओं का हो गया
मंगलवार, 17 जून, 2014 को 08:13 IST तक के समाचार
उत्तराखंड में गुप्तकाशी से लगभग सात किलोमीटर की चढ़ाई पर है देवली गाँव.
गुप्तकाशी से एक रास्ता सोनप्रयाग होते हुए
केदारनाथ को जाता था और शायद इसी वजह से देवली और बानीग्राम जैसे गांवों के
लोग केदारनाथ में काम और नौकरी की तलाश में दशकों से जाते रहे हैं.कुछ दूर चलने पर एक जर्जर सा मकान मिलता है जिसके सामने पालथी मार कर बैठी एक महिला अपने आप में खोई हुई है.
39 वर्षीय विजया देवी हमसे बात करते हुए फूट-फूट कर रोने लगीं.
उन्होंने बताया, "मेरे पति पहले ही गुज़र गए थे. दो बेटों में से एक 19 वर्ष का था जो केदारनाथ में हर साल रह कर कुछ पैसे कमाता था. उसी से छोटे बेटे की पढ़ाई और घर का ख़र्च निकलता था. उस बाढ़ मैं वो कहाँ खो गया, पता ही नहीं चला."
वो कहती हैं, "अब घर के ख़र्च में मेरे मायके वाले मदद करते हैं. मुआवज़े से छोटे बेटे की पढ़ाई हो रही है. लेकिन बेटा तो मेरा अब वापस नहीं लौटेगा".
देवली
केदारनाथ, गौरीकुंड, रामबाड़ा और सोनप्रयाग में मची तबाही में इस गाँव के 50 से भी ज़्यादा लोग मारे गए.
रंजना देवी की दास्तान सुन कर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं. इनके पति प्रकाश तिवारी केदारनाथ में बतौर पंडित काम करते थे.
साल में दो बार केदारनाथ जा कर रहते थे और जो पैसे कमाते थे उससे घर चलता था, बच्चों की पढ़ाई होती थी और एक बच्चे का इलाज भी होता था.
रंजना देवी के तीन बच्चों में से सबसे छोटा बेटा पांच वर्ष का है और विकलांग है. इनके पति की जब से आपदा में मौत हुई है उसके बाद लगे सदमे से रंजना देवी ने एक भी शब्द नहीं बोला है.
पिछले एक वर्ष से ये किसी मूर्ति की तरह चुपचाप खामोश बैठी रहती हैं. उनकी जेठानी सुशीला तिवारी से हमें उनकी तकलीफ़ सुनने को मिली.
सभी पुरुष सदस्यों को खो दिया
रंजना देवी के घर के ठीक ऊपर एक छोटी पहाड़ी पर रमेश तिवारी का घर है.62 वर्षीय रमेश तिवारी ने 17 जून, 2013 के दिन केदारनाथ मंदिर में जाकर अपनी जान किसी तरह बचाई थी.
लेकिन उस हादसे में उन्होंने अपने परिवार के सभी पुरुष सदस्यों को खो दिया.
उन्होंने बताया, "केदारनाथ में मेरी दो छोटी धर्मशालाएं थीं और एक मकान. सब कुछ उजड़ गया है. जवान बच्चे तो रहे नहीं. अब मैं तो बूढ़ा हो चला हूँ. भविष्य में क्या होगा किसे पता".
देवली गाँव में कुछ घंटे बिताने पर जो बात सबसे ज़्यादा चौंकाने वाली लगी वो ये कि लोगों को मुआवज़ा तो मिला है लेकिन उनकी शिकायतें शायद किसी ने नहीं सुनीं.
मलाल इस बात का भी है कि केदारनाथ में तबाही के बाद अब रोज़ी-रोटी का एकमात्र ज़रिया भी ख़त्म सा हो गया है.
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