किसकी सरकार? : मजदूरों की या मालिकों की?...श्रम कानूनों में मालिकों के पक्ष में बदलाव,मजदूरों की राह में कांटे,श्रम कानूनों में मालिकों के पक्ष में बदलाव |
Tuesday, 17 June 2014 09:01 |
जनसत्ता 17 जून, 2014 : केंद्र
सरकार हो या राजस्थान की वसुंधरा राजे सरकार, मजदूरों की राह में कांटे
बिछाने का काम कर रही है। सरकारी क्षेत्र में नौकरियों के विज्ञापनों को
रद्द करने के बाद अब वह श्रम कानूनों में मालिकों के पक्ष में बदलाव करने
जा रही है। बीते पांच जून को संपन्न राज्य मंत्रीमंडल की बैठक में औद्योगिक
विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन करने के प्रस्ताव किए गए हैं। प्रस्तावित
संशोधन में तीन सौ से कम मजदूरों वाले कारखाने या संस्थान को बंद करने के
लिए अब सरकार से अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी। वर्तमान प्रावधानों के
अनुसार यह संख्या सौ मजदूरों की है। मंत्रीमंडल की बैठक में ठेका मजदूरों
से संबंधित वर्तमान व्यवस्था में भी संशोधन का फैसला लिया गया है, जिसमें
ठेका मजदूर को संस्थान का कर्मचारी मानने की व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। प्रस्तावित संशोधन में नौकरी से निकाले जाने के बाद मजदूर द्वारा कभी भी दावा करने की व्यवस्था को खत्म कर तीन साल तक सीमित किया जा रहा है। इसके साथ ही यूनियन बनाने के लिए संबंधित संस्थान के कुल मजदूरों के पंद्रह फीसद सदस्य होने के प्रावधान को संशोधित कर तीस फीसद किया जाएगा। उद्यम के लाइसेंस पंजीयन के लिए भी प्रस्तावित सुधार के मुताबिक पचास से कम श्रमिक संख्या वाले उद्यम के पंजीयन की आवश्यकता नहीं होगी जो वर्तमान में बीस है। अगर यह संशोधन अमल में आता है तो राज्य के करीब तीन हजार कारखाने नियंत्रण-मुक्त हो जाएंगे। सरकार इन संशोधनों को अध्यादेश के जरिए लागू करने की तैयारी में है। हालांकि औद्योगिक विवाद अधिनियम, 1947 में संशोधन केंद्र से जुड़ा मामला है, लेकिन राज्यों से संबद्ध मामलों में राष्ट्रपति के अनुमोदन से अध्यादेश भी लागू किए जा सकते हैं। जमीन की भूख इस कदर हो गई है कि सरकार विश्वविद्यालय और गांधीवादी संस्थानों को भी बख्शने को तैयार नहीं। सरकार जयपुर के राजस्थान विश्वविद्यालय के बीच से आम सड़क निकाल कर झालाना से शांतिपथ को जोड़ने की कवायद में इसके बीच आ रहे गर्ल्स हॉस्टल की सुरक्षा की भी
अनदेखी पर उतारू है। इसी तरह, 1959 से समग्र सेवा संघ और स्वतंत्रता सेनानी
गांधीवादी गोकुल भाई भट्ट की स्मृति-स्थल के लिए जमीन मिली हुई थी। उस
जमीन को पूर्व में हवाई अड्डे के लिए अवाप्त भी किया गया था, लेकिन अवाप्ति
से मुक्त करवा कर सरकार ने जयपुर विकास प्राधिकरण के जरिए आठ बीघा आठ
बिस्वा जमीन वर्ष 2001 में टोकन मनी पर फिर से दी थी। अब इसे आबंटन शर्तों
का पालन न करने के नाम पर निरस्त कर दिया है।दूसरी ओर, नरेंद्र
मोदी सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन स्वास्थ्य पर खर्च को बढ़ाने की
बात तो बड़े जोर-शोर से करते हैं। लेकिन उन्हीं की पार्टी के राज में
राजस्थान में आरपीएमटी की डेढ़ सौ सीटें कम कर दी गई हैं और मेडिकल परीक्षा
में गलत उत्तरों को लेकर भारी गड़बड़झाला हो रहा है। जबकि राजस्थान के जयपुर,
अजमेर, जोधपुर, कोटा आदि सरकारी मेडिकल कॉलेजों में करीब सात सौ रिक्तियां
पड़ी हुई हैं। जाहिर है, इसका लाभ निजी मेडिकल कॉलेज उठाएंगे, जिनके पास न
तो ढांचा है और न सुविधा और आमतौर पर शिक्षक भी किराए के होते हैं।
निजी क्षेत्र को लाभ देने के लिए एमसीआइ की इस करतूत पर केंद्र और राज्य सरकारें मौन क्यों हैं? दोनों जगह एक ही दल की सरकार है। नरेंद्र मोदी के ‘संकल्पों’ की चर्चा बहुत है, लेकिन सुशासन की नजीर या हलचल भी कहीं दिख नहीं रही है! ’रामचंद्र शर्मा, तरूछाया नगर, जयपुर |
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