मुर्गे खाने वालों पर बेअसर गोलियाँ?
इंसानों की दवाई मुर्गों को!: पोल्ट्री फार्मों में मुर्गों का वज़न बढ़ाने के लिए उन्हें धड़ल्ले से एंटिबायोटिक दवाएं दी जा रही है.
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सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने दिल्ली और आसपास के इलाकों से जुटाए सैंपलों में से क़रीब 40 फ़ीसदी में एंटिबायोटिक दवाओं का अंश पाया, देश के दूसरे हिस्सों में स्थिति इससे अलग नहीं है.
31 जुलाई, 2014
पोल्ट्री फार्मों में मुर्गों का वज़न बढ़ाने के लिए उन्हें धड़ल्ले से एंटिबायोटिक दवाएं दी जा रही है.
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट (सीएसई) ने
दिल्ली और आसपास के इलाकों से जुटाए सैंपलों में से क़रीब 40 फ़ीसदी में
एंटिबायोटिक दवाओं का अंश पाया, देश के दूसरे हिस्सों में स्थिति इससे अलग
नहीं है.इंसानों की दवाई मुर्गों को!
मसलन सिप्रोफ्लॉक्सासिन, जिसका इंसानों के इलाज के लिए आम तौर पर प्रयोग किया जाता है.सुनीता नारायण ने बीबीसी हिंदी को बताया, “जानवर बीमार हो तो एंटिबायोटिक दी जा सकती है लेकिन यहां तो उनका वज़न बढ़ाने के लिए एंटिबायोटिक दिया जा रहा है.”
जो एंटिबायोटिक दवाएं वज़न बढ़ाने के लिए मुर्गो को दी जाती हैं, वो उनके मांस में रह जाती हैं जब हम ये मांस खाते हैं तो एंटिबायोटिक हमारे पेट में चला जाता है.
ज़्यादा एंटिबायोटिक का असर
अत्यधिक एंटिबायोटिक इंसानी शरीर में जाने से धीरे-धीरे ये अपना असर खो देते हैं यानी बीमारी के वक्त ये एंटिबायोटिक असर करना बंद कर देते हैं और मरीज़ की जान पर बन आती है.उन्होंने कहा, “अगर सिप्रोफ्लॉक्साससिन जैसी दवाइयां मुर्गों को दी जा रही हैं तो ये गलत है.लेकिन बाज़ार में मुर्गों की सप्लाई के बाद ये पता लगाना काफ़ी कठिन है कि कौन इन दवाइयों का इस्तेमाल करता है.”
प्रयोग पर नियंत्रण नहीं
वहीं सीएसई के लैब प्रमुख चंद्रभूषण का कहना है कि भारत में एंटिबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल पर कोई नियंत्रण नहीं होने की वजह से ऐसा खुलेआम हो रहा है.“कई अन्य देशों ने भी ऐसा किया है, लेकिन भारत एक ऐसा देश है जहां बेरोकटोक एंटिबायोटिक खरीदी जा सकता है और किसी भी प्रयोग में लाया जा सकता है. सरकार को इसे तुरंत नियंत्रित करना चाहिए. ये लोगों की जान के साथ खिलवाड़ है.”
भारत में पोल्ट्री फार्मिंग एक बड़ा उद्योग है और हर साल करीब 35 लाख टन मुर्गों के मांस का उत्पादन होता है. एक अनुमान के अनुसार ये करीब़ 50 हज़ार करोड़ रुपए का उद्योग है.
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