Thursday 31 July 2014

GM crop debate | जीएम फसल : भरोसेमंद रिसर्च?, अन्नदाता की भलाई में समाधान? | विपक्ष : बंजर हो जाएगी धरती-जीएम फसलों से मिट्टी विषैली होती है, भूजल का स्तर गिरता है और रासायनिक कीटनाशकों और खाद के अधिक इस्तेमाल के कारण पूरी खाद्यान्न श्रृंखला जहरीली हो जाती है।

GM crop debate | जीएम फसल : भरोसेमंद रिसर्च?, अन्नदाता की भलाई में समाधान?

विपक्ष : बंजर हो जाएगी धरती-जीएम फसलों से मिट्टी विषैली होती है, भूजल का स्तर गिरता है और रासायनिक कीटनाशकों और खाद के अधिक इस्तेमाल के कारण पूरी खाद्यान्न श्रृंखला जहरीली हो जाती है।

Updated: Thu, 31 Jul 2014 10:11 AM (IST) |
 और जानें : GM crop debate | Rashtriya Swayamsevak Sangh | Narendra Modi | pesticides | consumption | chemical pesticides | soil fertility |


जीन संशोधित यानी जेनेटिकली मोडिफाइड (जीएम) फसलों को लेकर भारत में एक बार फिर जीन संशोधित यानी जीएम फसलों का मामला गरमा गया है। पेश है एक रिपोर्टः-
नरेंद्र मोदी सरकार पर इस मसले पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ (आरएसएस) के दबाव में काम करना आरोप लगा है। पहले खबर आई थी कि देश में 15 जीएम फसलों के फील्ड ट्रायल की अनुमति दे दी गई है। बाद में संघ से जुड़े स्वदेशी जागरण मंच की कथित आपत्ति के बाद केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने फील्ड ट्रायल रोक दिया। अब यह मांग उठ रही है कि नरेंद्र मोदी सरकार यह समझे कि उद्योग जगत के वैज्ञानिक दावों की सच्चाई क्या है और क्या जीएम फसलें वास्तव में मानव स्वास्थ्य व पर्यावरण के लिए सुरक्षित हैं। इसके बाद ही कोई फैसला लिया जा सकेगा।
दरअसल, दुनियाभर से जीएम फसलों के नतीजों को लेकर दो किस्म की बातें हैं। व्यावसायिक लॉबी की ओर से कहीं किसी फसल से फायदे का दावा किया गया है, तो कहीं पर्यावरण और खेती के जानकार नुकसान की भी बात करते हैं। परिणामस्वरूप, दुनिया के एक बड़े हिस्से में इसका विरोध हो रहा है तो कई देशों में किसानों को फायदा भी हुआ है।
भारत में स्थिति जरा भी स्पष्ट नहीं है। यूपीए सरकार के कार्यकाल में विरोधाभासी खबरें सामने आईं। प्रधानमंत्री राजी थे, लेकिन उनके कुछ सहयोगी विरोध कर रहे थे। सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित एक कमेटी ने भी सरकार पर सवालिया निशान उठाए। नई सरकार में भी स्थिति धुंधली ही बनी हुई है।
कुल मिलाकर सरकार को अन्नदाता की भलाई को ध्यान में रखते हुए पुख्ता वैज्ञानिक जांच करवाना चाहिए, ताकि सही दिशा में आगे बढ़ा जा सके। न पर्यावरण को नुकसान हो, न जहरीली उपज पैदा हो।



  • पक्ष : जीएम उपज ही भर पाएगी दुनिया का पेट




  • दुनिया की आबादी लगातार बढ़ रही है। जंगल नष्ट कर और घास वाली जमीनों पर खेती करना पड़ रही है। इससे पर्यावरण, जैव विविधता और जल आपूर्ति का सिस्टम बर्बाद होने का खतरा है। दुनिया को बेहतर उपज की जरूरत है और जीएम इसे हासिल करने का अच्छा तरीका है।



  • जीएम से रसायनों का इस्तेमाल नहीं बढ़ेगा। दुनियाभर में कीट-प्रतिरोधी कपास और मक्का की उपज पहले से कई गुना कम कीटनाशकों में हो रही है।



  • जीएम का फायदा सिर्फ बड़ी कंपनियों को नहीं होगा, बल्कि लागत कम पड़ने से किसानों को बड़ा फायदा होगा।



  • जीएम समर्थक लॉबी के मुताबिक देश में यह भ्रम फैलाया जा रहा है कि जीएम फसलों को कोई नहीं चाहता। हकीकत यह है कि बीटी कॉटन को गैरकानूनी ढंग से भारत मंगाया जा रहा था।



  • जीएम प्रौद्योगिकी में एक-दो जीनों का हेरफेर होता है, लेकिन पारंपरिक संकरण में समूचे जिनोम का बंटाधार कर दिया जाता है।




  • विपक्ष : बंजर हो जाएगी धरती




  • जीएम फसलों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित तकनीकी विशेषज्ञ कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक, जीएम फसलों के खतरे को बेहद गैर जिम्मेदाराना तरीके से बिना किसी वैज्ञानिक विधि के और अपारदर्शी तरीके से मापा गया है।



  • भारत में उगाये जाने वाले कपास के 90 प्रतिशत से भी ज्यादा बीज अमेरिकी कंपनी मोंसैंटो कंपनी द्वारा बेचें जा रहे हैं और यह कंपनी को गाढ़ी कमाई हो रही है।



  • जैविक खेती के लिए अनुपयुक्त इन फसलों से पर्यावरण पर बुरा प्रभाव पड़ेगा और इनके उपयोग से किसानो को काफी घाटा उठाना पड़ेगा। इन कुप्रभावों में सुधार की गुंजाईश काफी कम रह जाती है।



  • सेंट्रल इंस्टीट्यूट फॉर कॉटन रिसर्च, नागपुर ने स्वीकार किया है कि 2004 से 2011 के बीच बीटी कॉटन की पैदावार में कोई महत्वपूर्ण वृद्धि नहीं हुई।



  • जीएम फसलों से मिट्टी विषैली होती है, भूजल का स्तर गिरता है और रासायनिक कीटनाशकों और खाद के अधिक इस्तेमाल के कारण पूरी खाद्यान्न श्रृंखला जहरीली हो जाती है।

असमंजस में रहे मनमोहन
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार जीएम फसलों पर हमेशा दुविधा में रही। डॉ. सिंह ने एक बार कहा था कि जीएम फसलों के खिलाफ अवैज्ञानिक पूर्वाग्रहों से ग्रसित होना गलत है। जैव प्रौद्योगिकी में फसलों की पैदावार बढ़ाने की प्रचुर संभावना है और उनकी सरकार कृषि विकास के लिए इन नई तकनीकों को प्रोत्साहन देने के प्रति वचनबद्ध है।
हालांकि हकीकत यह रही कि जयराम रमेश ने फरवरी 2010 में बीटी बैगन पर शोध को स्थगित कर दिया था। उनके बाद पर्यावरण मंत्रालय संभालने वाली जयंती नटराजन ने जीएम फसलों के फील्ड ट्रायल की अनुमति देने की उद्योग जगत की मांग के दबाव के सामने से झुकने से मना कर दिया था।
दुनिया का हाल



  • अमेरिका में 20 साल पहले पहली जीएम फसल आई थी, लेकिन आज तक ऐसी किसी फसल की पैदावार नहीं बढ़ सकी है।



  • अमेरिका के कृषि विभाग के अनुसार, जीएम मक्का और जीएम सोयाबीन की पैदावार परंपरागत प्रजातियों से भी कम है।



  • यूरोपीय संघ ने यूरोपीय देशों में जीएम फसलों के उपयोग को वैज्ञानिक तथ्यों और समाजिक अस्वीकृति की वजह से प्रतिबंधित कर दिया।



  • इन नई किस्म की जीएम फसलों में खतरनाक कीटनाशकों के मिश्रण का इस्तेमाल किया जाता है। अर्जेंटीना, ब्राजील और चीन में जीएम फसलों के कारण कीटनाशकों का इस्तेमाल घटने के बजाय बढ़ गया है।



  • कनाडा-अमेरिका के राज्यों में कुछ किसान हाथों से कीटों का सफाया करने को मजबूर हो रहे हैं, क्योंकि इन पर कोई कीटनाशक असरदार नहीं है।

एक हकीकत यह भी



  • 14 अरब लोगों का पेट भरने लायक अनाज उत्पन्न हुआ 2013 में।- 02 गुना खाद्यान्न उत्पादन विश्व की कुल आबादी की जरूरत से ज्यादा हुआ



  • 40 प्रतिशत अन्न बर्बाद हो जाता है दुनिया भर में



  • 163 अरब डॉलर का खाद्यान्न बर्बाद होता है अमेरिका में



  • 25 करोड़ लोग भूखे पेट सोते हैं भारत में

नजीर है आंध्रप्रदेश
जीएम फसलों के पक्षधर कह रहे हैं कि इसमें कीटनाशकों की खपत घटेगी। वहीं विरोधी दुनियाभर के उन उदाहरणों को सामने रख रहे हैं, जहां रसायनों का उपयोग बढ़ गया है।
बहरहाल, आंध्र प्रदेश में करीब 35 लाख हेक्टेयर जमीन में रासायनिक कीटनाशकों के बिना ही खेती की जा रही है। करीब 20 लाख हेक्टेयर में रासायनिक खाद का भी इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है।
इसके बावजूद उत्पादन तेजी से बढ़ रहा है, प्रदूषण घट रहा है, मिट्टी की उर्वरता बढ़ रही है और किसानों की आय में वृद्धि हो रही है।

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