Hemorrhagic fever (EHF) [रक्तस्रावी बुखार]:
एड्स के बाद एक और खतरनाक बीमारी इंसानी दुनिया में आतंक मचा रही है
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30 Jul, 2014
एड्स
की तरह एक और बीमारी जानवरों से निकलकर इंसानों की दुनिया में आतंक फैला
रही है. अफ्रीका के लाइबेरिया में अब तक 129 लोग इससे मर चुके हैं और कम से
कम 670 लोग इस वायरस की चपेट में हैं. एक बार इस वायरस के चपेट में आने के
बाद बचने की संभावना मात्र 10 प्रतिशत ही है. अब तक इसका कोई इलाज नहीं और
90 प्रतिशत संक्रमित मरीज मौत के शिकार हो चुके हैं. लाइबेरिया के
प्रेसिडेंट ने स्थानीय लोगों के देश से बाहर जाने पर प्रतिबंध लगा दिया है
ताकि अफ्रीका के अलावा अन्य देशों में ये संक्रमण न फैले.
‘इबोला
वायरस’ आज लाइबेरिया की परेशानी बन चुका है. लाइबेरिया के सबसे प्रतिष्ठित
अस्पताल में ‘इबोला हेमोग्राफिक फीवर’ के रोगियों के लिए काम कर रहे एक
डॉक्टर की मौत भी हो चुकी है और इसी के लिए अमेरिका से आए 2 अमेरिकी वर्कर
भी इस संक्रमण की चपेट में आकर बीमार पड़ चुके हैं.
क्या है इबोला वायरस और इबोला हेमोग्राफिक फीवर?
‘इबोला’
जंगली जानवरों से इंसानों और फिर इंसानों से इंसानों के बीच फैलने वाला एक
खतरनाक ‘वायरस’ है. ‘टेरोपोडिया फैमिली’ के चमगादड़ खासतौर पर ‘इबोला वायरस’
के वाहक होते हैं. इबोला वायरस डिजीज (ईवीडी) या इबोला हेमोग्राफिक फीवर (ईएचएफ) इबोला
वायरस से होने वाली बीमारियां हैं. इबोला वायरस से संक्रमण की स्थिति को
‘इबोला वायरस डिजीज’ कहा जाता है जिसे औपचारिक रूप से ‘इबोला हेमोग्राफिक
फीवर’ नाम दिया गया है.
कैसे पता चलता है इबोला वायरस डिजीज का?
वायरस से
संक्रमित होने के 2 दिन से 3 हफ्तों में ‘इबोला हेमोग्राफिक फीवर’ के लक्षण
दिखने लगते हैं जिनमें बुखार होना, गले और मांसपेशियों में दर्द, सिर में
दर्द प्रमुख होते हैं. बीमारी बढ़ जाने पर उलटी, डायरिया जैसे लक्षण दिखते
हैं जिनमें लीवर और किडनी ठीक तरह काम नहीं करते. कई मरीजों में इस स्थिति
तक आते-आते इंटरनल ब्लीडिंग शुरू हो जाती है और उनकी मौत हो जाती है.
जानवरों से इंसानों में कैसे फैला संक्रमण?
इबोला
वायरस डिजीज का पहला केस फरवरी 2014 में पश्चिमी अफ्रीका के गिनी में सामने
आया था. लैब में काम करने के दौरान संक्रमित हुए एक आदमी से यह वायरस
फैला. लैब में उस व्यक्ति के संक्रमित होने के 61 दिन के अंदर यह तेजी से
फैल गया. 23 अप्रैल तक इबोला हेमोग्राफिक फीवर के घेरे में आने वाले मरीजों
की संख्या 242 हो गई जिनमें 142 की मौत भी हो गई, रोग फैलता ही रहा. 25
मार्च को मिनिस्ट्री ऑफ हेल्थ ऑफ गिनी ने चार दक्षिणी जिलों (गुएकेडोऊ,
मासेंटा, जेरेकोरे, किसिडोऊगोऊ) में इबोला हेमोग्राफिक फीवर फैले होने की
ऑफिशियल घोषणा की गई.
मुख्य फीचर्स
- इबोला वायरस डिजीज को एक औपचारिक नाम इबोला हेमोग्राफिक फीवर दिया गया है.
- सेंट्रल और वेस्ट अफ्रीका के ग्रामीण जंगली इलाकों तथा बरसाती इलाकों में इसका प्रकोप मुख्य रूप से देखा जा रहा है.
- जंगली जानवरों इंसान और इंसानों से इंसानों के बीच फैलता है यह रोग
- टेरोपोडिया फैमिली के चमगादड़ खासतौर पर इबोला वायरस के वाहक होते हैं.
- अभी तक इस वायरस के खात्मे और इस बीमारी का कोई इलाज नहीं मिल पाया है.
लक्षण
- जोड़ों और मांसपेशियों में दर्द, स्किन का पीला पड़ जाना, बाल झड़ना.
- आंखों में अचानक रौशनी के प्रति अत्याधिक सेंसिटिव हो जाना. बहुत अधिक रौशनी बर्दाश्त नहीं कर पाना, आंखों से जरूरत से ज्यादा पानी आना;
- तेज बुखार, कॉलेरा, डायरिया, टायफॉयड के लक्षण
- एलिसा (एंटीबॉडी-कैप्चर एंजाइम लिंक्ड इम्योनोसोरबेंट एसे) (
- एंटीजेन डिटेक्शन टेस्ट्स
- सीरम न्यूट्रलाइजेशन टेस्ट्स
- आर-टीपीसीआर (रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज पोलीमेरेज चेन रिएक्शन) एसे
- इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (
- सेल कल्चर के द्वारा वायरस अलग करना
नया नहीं है इबोला वायरस का प्रकोप
इबोला
वायरस का इंसानी बस्ती में प्रकोप नया नहीं है. 1976 में पहली बार यह वायरस
प्रकाश में आया था. पर अब तक इस वायरस का कोई इलाज ढूंढा नहीं जा सका है
जबकि एक बार वायरस से इंफेक्ट हो जाने के बाद मरीज के बचने की संभावना कम
ही होती है. इस वायरस के इंफेक्शन से मरने की संख्या 50 प्रतिशत से 90
प्रतिशत तक है. इंफेक्शन के बाद ओरल हाइड्रेशन थेरेपी या इंजेक्शन के जरिए
शरीर में लिक्विड फूड पहुंचाने के अलावे डॉक्टर के पास भी कोई रास्ता नहीं
होता.
दुनिया के कितने देशों में फैल चुका है यह?
अधिकांशत:
इसका प्रकोप उप सहारा अफ्रीका के क्षेत्रों में देखा गया है. रूस और
यूनाइटेड स्टेट्स के कुछ क्षेत्रों में इसका संक्रमण पाया गया है लेकिन वह
अंडर कंट्रोल है. मुख्यत: अफ्रीका के इन ग्रामीण और जंगली हिस्सों में ही
इसका प्रकोप है. इससे लोगों को बचाने की कोशिश में लगे वर्कर्स और डॉक्टर्स
के भी जरा सी असावधानी से इसके चपेट में आने की संभावना होती है. अमेरिकी
वर्कर्स के संक्रमित होने और एक अफ्रीकी डॉक्टर के मरने से मेडिकल जगत में
इसे लेकर एक डर भी पैदा हो गया है.
इकोनॉमिक
कम्यूनिटी ऑफ वेस्ट अफ्रीकन स्टेट्स, यू.एस.सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल,
यूरोपियन कमिशन जैसी संस्थाओं ने इसके लिए फंड्स भी डॉनेट किए हैं. इसके
अलावे कई चैरिटी सेंटर्स भी इसके लिए फंड इकट्ठा करने के लिए आगे आ रहे
हैं.
कैसे फैलता है?
इंफेक्शन फैलने में 13 से 15 दिन का वक्त लगता है. संक्रमित ब्लड, संक्रमित व्यक्ति के द्वारा दूसरे व्यक्ति में यह फैल सकता है.
इलाज और बचाव
संक्रमण
के बाद उपचार या संक्रमण से पूर्व इससे बचाव के लिए अब तक कोई वैक्सिन नहीं
है. शुरुआती दिनों में अगर इसका पता चल जाए तो इसके ठीक होने की संभावना
बन सकती है. संक्रमित व्यक्ति को ही स्व-जागरुकता से कोशिश करनी चाहिए उससे
अन्य कोई संक्रमित न हों और जल्द से जल्द अस्पताल को इसकी जानकारी दें.
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