BREAKING: जमात-उद-दावा पर अमरीका का प्रतिबंध,लश्कर-ए-तैयबा के दो वरिष्ठ सदस्य भी अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी घोषित,जमात-उद-दावा के नेता हाफ़िज़ सईद को भी अमरीका
आतंकवादी क़रार दे चुका है और उन्हें पकड़वाने के लिए एक करोड़ डॉलर का
इनाम भी घोषित कर रखा है.
जिन चार नामों को इस लिस्ट में शामिल
किया गया है, वो हैं: जमात-उद-दावा, अल अनफाल ट्रस्ट, तहरीक-ए-हुरमत-ए-रसूल
और तहरीक-ए-तहाफ़ुज़ किबला अव्वल.
इसके अलावा विदेश विभाग ने लश्कर-ए-तैयबा के दो वरिष्ठ सदस्यों को भी अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी घोषित कर दिया है.
अमरीकी वित्त मंत्रालय के अनुसार इनमें से एक,
नाज़िर अहमद चौधरी, साल 2000 के शुरूआती दिनों से ही लश्कर से जुड़े रहे
हैं और उसकी रणनीति में उनका योगदान रहा है. वहीं मोहम्मद हुसैन गिल लश्कर
के संस्थापकों में से हैं और इस वक़्त उसके मुख्य वित्तीय अधिकारी हैं.
इस लिस्ट में शामिल किए जाने के बाद अमरीका अपनी ज़मीन पर या अपने अधिकार वाले इलाक़ों में इनका धन-संपत्ति ज़ब्त कर सकता है.
अमरीका ने 2001 में ही लश्कर-ए-तैयबा को चरमपंथी संगठन घोषित कर दिया था.
विदेश विभाग की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है
कि लश्कर ने साल 2008 के मुंबई हमलों की ज़िम्मेदारी ली थी जिसमें 163 लोग
मारे गए थे. इसके अलावा 2011 में जम्मू-कश्मीर में कई हमलों के लिए लश्कर
ज़िम्मेदार है.
जमात-उद-दावा के नेता हाफ़िज़ सईद को भी अमरीका आतंकवादी क़रार दे चुका है और उन्हें पकड़वाने के लिए एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है.
लेकिन हाफ़िज़ सईद पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं और रैलियां निकालते हैं.
पाकिस्तान सरकार और फ़ौज पर आरोप लगते रहे हैं कि वो लश्कर-ए-तैयबा को बढ़ावा देती है और उनकी मदद से ही वो अपनी ताक़त बढ़ाते जा रहे हैं.
पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है.
आरिफ़ जमाल कहते हैं, "पाकिस्तान के जो संगठन विदेश में चरमपंथी गतिविधियों को अंजाम देते हैं पाकिस्तान में उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है."
आरिफ़ मानते हैं कि अमरीका के इन समूहों को प्रतिबंधित करने का असर यह होगा कि अमरीका या उसके हितों से जुड़े देशों में इन समूहों का काम करना बेहद मुश्किल हो जाएगा.
अमरीकी विदेश विभाग ने विदेशी
चरमपंथी गुटों की अपनी लिस्ट में संशोधन करते हुए जमात-उद-दावा समेत
लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े तीन और गुटों को भी शामिल कर लिया है.
विदेश विभाग की तरफ़ से जारी बयान में कहा गया है
कि ये चारों संगठन दरअसल लश्कर-ए-तैयबा के ही अलग-अलग नाम हैं और
प्रतिबंधों से बचने के लिए लश्कर बार-बार अपना नाम बदलता रहा है.इसके अलावा विदेश विभाग ने लश्कर-ए-तैयबा के दो वरिष्ठ सदस्यों को भी अंतरराष्ट्रीय चरमपंथी घोषित कर दिया है.
'मुंबई हमलों के लिए ज़िम्मेदार'
"जमात-उद-दावा और उसके चेहरों को पहले भी कई देशों ने प्रतिबंधित किया है लेकिन पाकिस्तान ने आज तक इस संगठन या इसके किसी अंग के ख़िलाफ़ कोई कार्रवाई नहीं की है और मुझे नहीं लगता कि अब भी पाकिस्तान कोई ऐसा क़दम उठाएगा जिससे जमात-उद-दावा की भारत या दुनिया के किसी भी हिस्सा या पाकिस्तान में कार्रवाइयों पर कोई असर पड़ेगा. "
आरिफ़ जमाल, लश्कर-ए-तैयबा से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ
इस लिस्ट में शामिल किए जाने के बाद अमरीका अपनी ज़मीन पर या अपने अधिकार वाले इलाक़ों में इनका धन-संपत्ति ज़ब्त कर सकता है.
अमरीका ने 2001 में ही लश्कर-ए-तैयबा को चरमपंथी संगठन घोषित कर दिया था.
हाफ़िज़ सईद पर भी शिकंजा
अमरीकी विदेश विभाग के अनुसार लश्कर-ए-तैयबा अब अफ़गानिस्तान में भी सक्रिय है और 23 मई 2014 को हेरात में भारतीय वाणिज्य दूतावास पर हुए हमले भी लश्कर का ही हाथ था.जमात-उद-दावा के नेता हाफ़िज़ सईद को भी अमरीका आतंकवादी क़रार दे चुका है और उन्हें पकड़वाने के लिए एक करोड़ डॉलर का इनाम भी घोषित कर रखा है.
लेकिन हाफ़िज़ सईद पाकिस्तान में खुलेआम घूमते हैं और रैलियां निकालते हैं.
पाकिस्तान सरकार और फ़ौज पर आरोप लगते रहे हैं कि वो लश्कर-ए-तैयबा को बढ़ावा देती है और उनकी मदद से ही वो अपनी ताक़त बढ़ाते जा रहे हैं.
पाकिस्तान इन आरोपों से इनकार करता रहा है.
क्या पाकिस्तान कार्रवाई करेगा?
लश्कर से जुड़े मामलों के विशेषज्ञ और चरमपंथ पर लिखी किताब ट्रांसनेशनल जेहाद के लेखक आरिफ़ जमाल मानते हैं कि अमरीका के जमात-उद-दावा को प्रतिबंधित करने के बावजूद पाकिस्तान उसके ख़िलाफ़ कोई ठोस क़दम नहीं उठाएगा.आरिफ़ जमाल कहते हैं, "पाकिस्तान के जो संगठन विदेश में चरमपंथी गतिविधियों को अंजाम देते हैं पाकिस्तान में उन पर कोई कार्रवाई नहीं की जाती है."
आरिफ़ मानते हैं कि अमरीका के इन समूहों को प्रतिबंधित करने का असर यह होगा कि अमरीका या उसके हितों से जुड़े देशों में इन समूहों का काम करना बेहद मुश्किल हो जाएगा.
No comments:
Post a Comment