Monday, 23 June 2014

ज़रूर पढ़ें: 'दिल्ली विश्व विद्यालय में घमासान के पीछे अमरीकी दबाव', अमरीका के दवाब में UGC ने चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम जबरन शुरु किया,USA के सामने भारत सरकार ने घुटने टेके,अब भारतीय उच्च शिक्षा दुनिया भर के बाजार में बिकाऊ माल बन जाएगी,जिसकी शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय ने पिछले साल कर दी थी, UGC की अपनी स्वायत्ता और जनता के बीच उसके भरोसे पर प्रहार,DU-UGC विवाद: मुश्किल में अफसर

ज़रूर पढ़ें:

'दिल्ली विश्व विद्यालय में घमासान के पीछे अमरीकी दबाव', अमरीका के दवाब में UGC  ने चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम जबरन शुरु किया,USA के सामने भारत सरकार ने घुटने टेके,अब भारतीय उच्च शिक्षा दुनिया भर के बाजार में बिकाऊ माल बन जाएगी,जिसकी शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय ने पिछले साल कर दी थी, UGC की अपनी स्वायत्ता और जनता के बीच उसके भरोसे पर प्रहार

'दिल्ली विश्व विद्यालय में घमासान के पीछे अमरीकी दबाव'

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 मंगलवार, 24 जून, 2014 को 07:37 IST तक के समाचार


दिल्ली विश्वविद्यालय

स्नातक कार्यक्रम को चार वर्षीय करने के दिल्ली विश्वविद्यालय के फ़ैसले पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) पहले तो साल भर सोती रही और जो कम उसे पिछले साल करना था, उसे वो एक साल बाद कर रही है.
पूरे साल विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों और शिक्षकों ने इसके ख़िलाफ़ प्रदर्शन किए और तब जाकर यूजीसी को समझ में आया कि जनमत इसके ख़िलाफ़ हो गया है.

भाजपा ने दिल्ली के अपने घोषणा पत्र में कहा था कि वो इस फ़ैसले को वापस कराएंगे और अब केंद्र में भाजपा की सरकार है. इन दबावों के चलते यूजीसी ने ये कदम उठाया है.
ये यूजीसी की जिम्मेदारी है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति से हटकर देश में कहीं कोई काम न हो.

लोकतंत्र की दुहाई

अभी जो हो रहा है वो एक तरह से चुनावी राजनीति का भी हिस्सा है. क्योंकि उन्होंने चुनाव में वादा कर दिया था और दिल्ली में अगला चुनाव भी सिर पर है.
पिछले साल क्लिक करें शिक्षक संगठन सिर्फ यूजीसी के पास ही नहीं गए, बल्कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय के साथ ही उप राष्ट्रपति और राष्ट्रपति के पास भी गए, जो क्रमश: विश्वविद्यालय के चांसलर और विज़िटर हैं.
सभी जगह एक ही बात कही गई कि हम विश्वविद्यालय की स्वायत्ता में हस्तक्षेप नहीं करेंगे.

दिल्ली विश्वविद्यालय
उस समय कहा गया कि यूजीसी कानून के तहत विश्वविद्यालय में बने लोकतांत्रिक ढांचों ने इसके पक्ष में निर्णय ले लिया है.
किसी ने इस बात पर गौर नहीं किया कि जिन लोकतांत्रिक ढांचों की बात कही जा रही है, वास्तव में उनसे जबरन फ़ैसले कराए गए.

अमरीकी दबाव

दरअसल चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम अमरीका की ज़रूरत थी. अमरीका पिछले कई सालों से उच्च शिक्षा के स्तर पर सरकारी अनुदान कम कर रहा है.
इसलिए अमरीका चाहता है कि दुनिया के दूसरे हिस्सों से लोग आएं और वहां पढ़ें या अमरीका के विश्वविद्यालयों को भारत जैसे मुल्कों में जाकर अपने कैंपस स्थापित करने का मौका मिले और वो यहां से कमाई करें.
इसका सीधा प्रस्ताव तो अमरीका की तत्कालीन विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की तरफ से एक इंडो-अमरीकी संवाद में आया और इसके सामने भारत सरकार ने घुटने टेक दिए.
लेकिन इस बात को समझना जरूरी है कि इस तरह से ये मामला हल नहीं होने वाला है.
दरअसल पिछले साल क्लिक करें यूजीसी ने एक समिति बनाई और उससे कहा कि आप इस चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम की समीक्षा कीजिए और ये बताइए कि इसे देश भर में किस तरह लागू किया जाए.

समीक्षा समिति


दिल्ली विश्वविद्यालय के फैसले का विरोध
ये समिति अभी भी बनी हुई है. उसे खत्म भी नहीं किया गया है. ये काफी उच्च अधिकार प्राप्त समिति है. इसे देखकर लगता है कि यूजीसी ने इस फ़ैसले को पूरे देश में लागू करने का मन बना लिया था क्योंकि ये काम तो अमरीका के दवाब में किया जा रहा था.
बहुत कम लोगों को पता है कि बंगलौर विश्वविद्यालय को निर्देश जा चुके हैं कि इस अकादमिक सत्र से आप भी चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम शुरू कर दीजिए.
लेकिन अब सरकार के दबाव में यूजीसी पीछे हट रही है.
इसका दूसरा पक्ष जो मेरे लिए चिंता का विषय बनता जा रहा है वो ये है कि अब यूजीसी की अपनी स्वायत्ता और जनता के बीच उसके भरोसे पर प्रहार हो रहा है.
ये भारत सरकार का बड़ा लोकलुभावन फैसला लग रहा है, लेकिन जब तक हम ये नहीं कहेंगे कि क्लिक करें उच्च शिक्षा किसी दूसरे मुल्क के दबाव में काम नहीं करेगी, तब तक ये मामला हल नहीं होगा.

बिकाऊ माल?

इस फ़ैसले के बाद दिल्ली विश्वविद्यालय तो क्लिक करें चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को बंद कर देगा, लेकिन अमरीका का दबाव तो कम हो नहीं जाएगा.
पिछली एनडीए सरकार ने भारत की उच्च शिक्षा को विश्व व्यापार संगठन और गैट्स (व्यापार और सेवा संबंधी सामान्य समझौता) के पटल पर रख दिया था. यानी वैश्विक बाजार में उच्च शिक्षा को कारोबार का हिस्सा बना दिया था.
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार ने इसे आगे बढ़ाया. हम लंबे अर्से से मांग कर रहे हैं कि डब्ल्यूटीओ गैट्स के पटल पर उच्च शिक्षा की पेशकश को तुरंत वापस लिया जाए.
दोहा दौर की वार्ता के दौरान अगर इस पर सहमति बन गई तो हमारी उच्च शिक्षा दुनिया भर के बाजार में बिकाऊ माल बन जाएगी और उसे वैश्विक मानकों के आधार पर बदलना पड़ेगा, जिसकी शुरुआत दिल्ली विश्वविद्यालय ने पिछले साल कर दी थी.

DU-UGC विवाद: मुश्किल में अफसर

एफवाईयूपी पर छिड़ा विवाद

एफवाईयूपी पर छिड़ा विवाद

दिल्ली विश्वविद्यालय में चार साल के अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम (एफवाईयूपी) को लागू करने व निरस्त करने की लड़ाई ने यूजीसी तथा मानव संसाधन मंत्रालय के अफसरों की जान को सांसत डाल दिया है। यही अफसर एक महीने पहले तक जिस एफवाईयूपी से न केवल सहमत थे बल्कि विश्वविद्यालय की स्वायत्तता के नाम पर फैसले का बचाव भी करते थे, वही आज नई मंत्री के दबाव में फैसले को असंवैधानिक बता रहे हैं।


यूजीसी के अधिकारी फैसले को निरस्त कराने के लिए खुद अपनी सीमाओं का उल्लंघन कर दिल्ली विश्वविद्यालय के कालेजों को सीधे प्रवेश प्रक्रिया रोकने की सलाह दे रहे हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय में चार वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम लागू करना नियम विरुद्ध है या अनुकूल छात्रों के लिए उपयोगी अथवा अनुपयोगी, अब यह सवाल बेमानी है। कोई भी पक्ष इस पर बात करना भी नहीं चाहता है। 
 
 

कांग्रेस शासन में सब इसके विरोध में

कांग्रेस के शासन में जब यह लागू हो रहा था तो भाजपा ने इसका विरोध किया था। उस समय तमाम यूनियनों चाहे वे छात्र यूनियन हों या शिक्षक यूनियन, उनमें भी मतभेद व विरोध थे, लेकिन तब इस पाठ्यक्रम के गुण व दोष पर बहस हो रही थी।

आज एक साल बाद यह नाक की लड़ाई बन चुकी है। केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी का शायद यह सबसे पहला बड़ा फैसला है।

सीधे मंत्रालय दखल नहीं दे सकता, इसलिए यूजीसी की बांह मरोड़ी गई कि वह एफवाईयूपी कोर्स को निरस्त कराये। कहने को यूजीसी भी दिल्ली विश्वविद्यालय की तरह स्वायत्त संस्था है, लेकिन सभी जानते हैं कि यहां मंत्रालय या मंत्री की इच्छा के विरुद्ध पत्ता तक नहीं हिलता है।
 

DU-UGC विवाद: मुश्किल में अफसर

स्मृति ईरानी ने लगाया पूरा जोर!

स्मृति ईरानी ने लगाया पूरा जोर!

यूजीसी व मंत्रालय के अफसर जानते हैं कि विश्वविद्यालय जैसे स्वायत्तशासी संस्थान कैसे चलते हैं। उनके फैसलों को शास्त्री भवन में बैठकर नहीं पलटा जा सकता है, लेकिन मानव संसाधन मंत्री से सीधे लहजे में कहने की हिम्मत कौन करे।

मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी भी ऑन द रिकार्ड भले यह कहती हैं कि एफवाईयूपी मामले में यूजीसी फैसला ले रहा है, लेकिन ऑफ द रिकार्ड वे एफवाईयूपी को तत्काल निरस्त कराने के लिए एड़ी चोटी को जोर लगाए हुए हैं।

अधिकारी अपनी सीमायें जानते हैं, फिर भी वे डीयू को आदेश पर आदेश दे रहे हैं, लेकिन अड़ियल कुलपति दिनेश सिंह के सामने उनकी एक भी नहीं चल रही है।
 

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