Sunday, 29 September 2013

भुखमरी की कगार पर अंतरराष्ट्रीय एथलीट,दी आत्महत्या की चेतावनी

भुखमरी की कगार पर अंतरराष्ट्रीय एथलीट,दी आत्महत्या की चेतावनी
लखनउ, एजेंसी
Last Updated:29-09-13 10:59 AM
 
देश में खिलाड़ियों पर सुविधाओं और इनामों की बारिश की तमाम घोषणाओं के बीच एक स्याह सच यह है कि एशियाई खेलों समेत कई अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में मुल्क का सिर ऊंचा करने वाली भारोत्तोलक मीनाक्षी रानी गौड़ और उनका परिवार भुखमरी के कगार पर है।
    
भारोत्तोलन के मंच पर अनेक बार कामयाबी की इबारत लिख चुकी मीनाक्षी ने बातचीत में बताया कि मुझसे किस्मत ऐसी रूठ गयी है कि अंधेरे भरी जिंदगी के अंदेशे में मुझे विधानभवन के सामने मजबूरन धरना देना पड़ रहा है।
    
उन्होंने चेतावनी दी है कि अगर 10 दिन के अंदर सरकार ने आश्वासन के मुताबिक नौकरी नहीं दी तो मैं अपने दोनों बच्चों को साथ लेकर आत्महत्या कर लूंगी।
    
उत्तर प्रदेश के बरेली की रहने वाली मीनाक्षी का यह हताशापूर्ण ऐलान राज्य में खिलाड़ियों की स्थिति का एक और उदाहरण माना जा सकता है।
    
मीनाक्षी ने अप्रैल 1999 में दिल्ली में हुई एशियाई जूनियर एवं सीनियर भारोत्तोलन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीता था। इसके अलावा वर्ष 1995 में हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में रजत, 1996 में हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में ओवरऑल स्वर्ण पदक तथा 1998 में मध्य प्रदेश में हुई राष्ट्रीय चैम्पियनशिप में रजत पदक हासिल किया था।
उस वक्त उन्हें सिर आंखों पर बैठाया गया था लेकिन समय का पहिया घूमा और उनके सितारे गर्दिश में चले गये।    उत्तर प्रदेश के बरेली की मूल निवासी मीनाक्षी ने बताया कि उन्होंने वर्ष 2007 से 2011 तक फिरोजाबाद में भारोत्तोलन कोच के तौर पर काम किया, लेकिन वर्ष 2011 में हुए एक हादसे में उनके पति दीपक सैनी की मत्यु हो गयी और उसी दुर्घटना में पैर में चोट लगने की वजह से उनकी नौकरी भी छिन गयी। मीनाक्षी ने बताया कि इलाज कराने में उनका घर तक बिक गया। अब उनके सिर पर अपनी छत होना तो दूर, खाने के भी लाले पड़े हैं।
    
एथलीट ने बताया कि उन्होंने नौकरी के लिये खेल मंत्री नारद राय से गत 18 सितम्बर को मुलाकात की थी। इसके अलावा वह खेल सलाहकार रामवक्ष यादव से भी मिली थीं। उन दोनों ने ही उन्हें नौकरी का आश्वासन दिया था लेकिन इसके बावजूद कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
    
दस वर्षीय बेटे और पांच साल की बेटी की मां मीनाक्षी ने बताया कि मुफलिसी के आलम में उनके बच्चों का भविष्य भी बरबाद हो रहा है और उन्हें रोजगार तथा दीगर मदद की सख्त जरूरत है।
    
उन्होंने बताया कि वह वर्ष 2005-06 में राष्ट्रीय खेल संस्थान पटियाला से कोचिंग का प्रमाणपत्र हासिल कर चुकी हैं और अगर उन्हें दोबारा कोच की जिम्मेदारी दी जाएगी तो उन्हें संतोष होगा।

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