Tuesday 1 October 2013

अमरीका में कामबंदी का भारत पर क्या असर?

अमरीका में कामबंदी का भारत पर क्या असर?

 मंगलवार, 1 अक्तूबर, 2013 को 16:29 IST तक के समाचार

अमरीका में शुरु हुई क्लिक करें आंशिक कामबंदी अगर ज़्यादा दिन तक चली, तो इसका असर भारत समेत कई उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर पड़ सकता है.
सत्तारूढ़ डेमोक्रेटिक और विपक्षी रिपब्लिकन पार्टियों के बीच नया बजट पारित करने पर उत्पन्न हुए गतिरोध की वजह से कई सरकारी संस्थाओं और दफ़्तरों को बंद कर दिया गया है.
इनमें काम करने वाले लाखों क्लिक करें कर्मचारियों को बिना तनख्वाह के घर पर बैठने के लिए कहा गया है.

अमरीकी अर्थव्यवस्था फिर से ढुलमुल?

पिछले कुछ दिनों में अमरीकी अर्थव्यवस्था में सुधार आ रहा था. ऐसे में इस कदम से अमरीका और वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है.
पिछली बार अमरीकी सरकार में कामबंदी दिसंबर 1995 में हुई थी जब बिल क्लिंटन राष्ट्रपति थे. उस वक्त ये हालात 28 दिन तक बने रहे थे.
अगर इस बार भी ऐसा कुछ हुआ तो पटरी पर वापस आ रही अमरीकी अर्थव्यवस्था फिर से गड़बड़ा जाएगी.
अगर लोगों को तनख्वाह नहीं मिलेगी तो वे खर्चा नहीं करेंगे और अगर वह खर्च नहीं करेगा तो अर्थव्यवस्था में मांग कम हो जाएगी और अर्थव्यवस्था और नीचे जाएगी.

भारत पर असर

अमरीका में सरकारी सेवाओं की बंदी की आशंका से सोमवार को क्लिक करें एशियाई बाज़ारों में गिरावट देखी गई.
"अमरीका में सुधार की वजह से ये अर्थव्यवस्थाएं भी पटरी पर आ रही हैं. भारत की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो रहा था, निर्यात बढ़ रहा था, रुपए का मूल्य भी स्थिर हो रहा था क्योंकि अमरीका और यूरोप में खरीदारी बढ़ रही है."
एमके वेनू, आर्थिक मामलों के पत्रकार
जापान, हांगकांग, ऑस्ट्रेलिया और दक्षिण कोरिया सभी जगहों पर शेयर बाज़ार नीचे चले गए थे.
अगर ये मामला लंबा खिंचता है तो भारत और ब्राज़ील, चीन जैसी बाकी उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं पर असर पड़ेगा.
अमरीका में सुधार की वजह से ये अर्थव्यवस्थाएं भी पटरी पर आ रही हैं. भारत की अर्थव्यवस्था में भी सुधार हो रहा था, निर्यात बढ़ रहा था, रुपए का मूल्य भी स्थिर हो रहा था क्योंकि अमरीका और यूरोप में खरीदारी बढ़ रही है.
ऐसे में अगर अमरीका में कामबंदी संकट खिंचता है तो इससे भारतीय निर्यात फिर से कम हो जाएंगे, रुपया फिर से लुढ़क सकता है, चालू वित्त घाटा बढ़ जाएगा.

मुद्दा

दरअसल अमरीका में डेमोक्रेट्स और रिपब्लिकन्स के बीच एक समझौता हुआ है जिसके तहत सरकार रोज़मर्रा का खर्चा चलाने और वेतन आदि देने के लिए एक तयशुदा सीमा तक ही कर्ज़ ले सकती है. इसे डैट सीलिंग या कर्ज़ की सीमा कहते हैं.
ये कर्ज़ सीमा 17 अक्तूबर तक पूरी हो जाएगी और ओबामा प्रशासन चाहता है कि अमरीकी संसद फिर से बैठे और इस सीमा को बढ़ाए. लेकिन रिपब्लिकन पार्टी ने इसके लिए शर्त रखी है और यही है गतिरोध की वजह.
रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि वो इस बात पर तभी मंज़ूरी देंगे जब ओबामा प्रशासन अपने स्वास्थ्य संबंधी कार्यक्रम, ओबामाकेयर, को एक साल के लिए टाल दें.
इस बार यह झगड़ा मुख्य रूप से राष्ट्रपति बराक ओबामा के अमरीकी स्वास्थ्य क्षेत्र में किये गए सुधारों पर है. रिपब्लिकन किसी तरह से इसे लागू नहीं होने देना चाहते. ओबामा द्वारा लाये बदलावों में से कई 1 अक्टूबर लागू हो जायेंगे.
पिछले अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव में बराक ओबामा का ये मुख्य चुनाव मुद्दा था. सरकार का कहना है कि ये एक चुनावी मुद्दा था, लोगों ने चुनाव में इस पर वोट किया और इसलिए विपक्ष को इसे फिर से नहीं उठाना चाहिए.
ऐसे में सरकार ने अब आंशिक कामबंदी शुरु कर दी है जिसमें ग़ैर-ज़रूरी सरकारी कर्मचारियों को घर भेज दिया है.

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