Sunday, 29 September 2013

नकारात्मक राजनीति कब छोड़ेंगे मोदी?

नकारात्मक राजनीति कब छोड़ेंगे मोदी?


नरेंद्र मोदी
भारतीय जनता पार्टी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी ने अपनी चुनावी मुहिम का आगाज़ कर दिया है.
शुरुआती चरण में उनका ध्यान उन राज्यों पर ज़्यादा है जहाँ विधानसभा चुनाव होने वाले हैं.
धीरे-धीरे वे एक राज्य के मुख्यमंत्री से देश के बड़े नेता के रूप में सामने आ रहे हैं. रविवार को वे दिल्ली में अपनी पहली बड़ी राजनीतिक रैली में भाषण देने वाले हैं.
नरेंद्र मोदी की रैली के लिए एक हाईटैक स्टेज बनाया गया है. बताया जा रहा है कि 30 से ज़्यादा देशों के राजनयिक भी मोदी की इस रैली में शामिल होंगे.
उनकी इस रैली में मीडिया की भी गहरी दिलचस्पी है.

व्यक्ति पर निशाना

नरेंद्र मोदी ने अब तक कई बड़ी-बड़ी रैलियों में भाषण दिया है. उनके भाषण का केंद्र हमेशा नकारात्मक रहा है. जब वे किसी नीति या योजना पर भी टिप्पणी करते हैं तो उनके निशाने पर नीतियों या योजनाओं के बजाए व्यक्ति होता है.
मोदी नीतियों से ज्यादा ध्यान नेताओं के व्यक्तित्व पर केंद्रित करते हैं.
शुरुआती दिनों में वे अपने हर भाषण में गाँधी परिवार पर निशाना साधते थे. वे सोनिया गाँधी के इतालवी होने पर अक्सर नस्ली और व्यक्तिगत व्यंग किया करते थे.
नरेंद्र मोदी राजनाथ
भाजपा ने मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया है
कांग्रेस पार्टी ही आज़ादी के बाद के ज़्यादातर सत्ता में रही है. देश की एक बड़ी आबादी न केवल एक बेहतर विकल्प के लिए उत्सुक रही है बल्कि शुरू से ही बहुत से ऐसे लोग हैं जो कांग्रेस के विचारों से सहमत नहीं थे.
मतभेद लोकतंत्र का बुनयादी पहलू है लेकिन कांग्रेस से मोदी की नफ़रत लोकतंत्र की हदों को पार कर गई है. वे चुनावों में कांग्रेस और उसकी विचारधारा को हराने की बात नहीं करते बल्कि वो कांग्रेस को ही ख़त्म करने की बात कर रहे हैं.
मोदी अपने समर्थकों से एक ऐसे भारत के निर्माण की बात कर रहे हैं जिस में कांग्रेस का अस्तित्व ही नहीं होगा. कांग्रेस के अस्तित्व को ही ख़त्म करना उनका सबसे बड़ा राजनीतिक नारा है.

मोदी की नीतियां

राजनीतिक पार्टियाँ अपनी-अपनी योजनाओं और नीतियों की बुनियाद पर सत्ता में आने के लिए चुनाव लड़ती हैं किसी राजनीतिक दल को तबाह करने के लिए नहीं.
आने वाले दिनों में मोदी निश्चित रूप से अपनी नीतियां और योजनाएँ जनता के सामने पेश करेंगे लेकिन अभी तक उनकी सोच नकारात्मक रही है. और नकारात्मक राजनीति से बहुत ज़्यादा दिन तक जनता का समर्थन हासिल नहीं किया जा सकता.
लोकतंत्र में विचारधारा को हराने की बात की जाती है, राजनीतिक दलों को तबाह करने की नहीं. भारत के चुनावी इतिहास में ये पहला मौका है जब कोई राजनीतिक पार्टी अपनी विरोधी पार्टी को ख़त्म करने के नारे के साथ मैदान में उतरी है.
नरेंद्र मोदी को ये बात भी समझ लेनी चाहिए की राजनीतिक पार्टियाँ किसी के ख़त्म करने से ख़त्म नहीं होती बल्कि वे अपने पुराने और नकारात्मक नज़रिए के कारण ख़त्म होती हैं.

मोदी को लोकप्रियता उनके विकास और उनके प्रबंधन के कारण मिल रही है. उनकी नकारात्मक राजनीति ही उनकी राह में सबसे बड़ी बाधा है.
मोदी अपने प्रशासनिक मामलों में भले ही एक प्रतिभाशाली प्रबंधक रहे हों, लेकिन राजनीति में चाहे वह उनकी अपनी पार्टी रही हो या अन्य पार्टियाँ, उनकी सोच हमेशा नकारात्मक रही है.
यह दौर नकारात्मक राजनीति का नहीं बल्कि सकारात्मक राजनीति का है. पार्टियाँ अपने प्रदर्शन, नेताओं के व्यक्तित्व और प्रोग्रामों के आधार पर जाँची जाएंगी. मोदी को कामयाब होने के लिए लोकतंत्र का ये गुर जल्द सीखना होगा वरना वो खुद ही अपनी नकारात्मक राजनीति का शिकार हो जाएंगे

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