खतराः केदारनाथ में फिर जमने लगा पानी
तमाम झूला पुल टूटने से हजारों जिंदगियों की रफ्तार थम गई है, लेकिन अफसर सबको महज आश्वासन ही दे रहे हैं। केदारनाथ यात्रा शुरू करने की इतनी जल्दी है कि फिर बदलते मौसम को नहीं देखा जा रहा है। कुल मिलाकर आपदा की आफत का अंतहीन सिलसिला अभी जारी है।
केदारनाथ यात्रा में मौसम की अनदेखी
केदारनाथ यात्रा हर हाल में नवरात्र से शुरू कराने को आतुर सरकार फिर बदल रहे मौसम की अनदेखी कर रहा है। जिले के विभिन्न हिस्सों में बारिश और केदारनाथ की ऊंची चोटियों में बर्फबारी हो रही है।
रात को तापमान गिरने की वजह से कुछ स्थानों पर पानी भी जमने लगा है। ऐसे में तीर्थ यात्रियों की सुरक्षा फिर भगवान भरोसे रहेगी। बुधवार को भी केदारनाथ में दिन भर मौसम ने कई रंग बदले। सुबह बारिश होने के बाद लगभग 10 बजे से आधा घंटे तक मौसम साफ रहा। इसके बाद लगभग पांच घंटे लगातार बारिश रही।
सड़कें बंद होने से सब्जियां बरबाद
घाट ब्लॉक की अधिकांश सड़कें अब तक अवरुद्ध हैं। यहां के लोगों की आजीविका आलू, राजमा और चौलाई की फसल पर ही टिकी है। सड़कों के नहीं खुलने से ग्रामीण नकदी फसलों को बाजार तक नहीं पहुंचा पा रहे हैं और फसलें खेतों में ही बरबाद हो रही हैं।
उन्होंने जिला प्रशासन को खेतों में सड़ रही फसल की जानकारी दी, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। आजिज होकर अब ब्लॉक के दूरस्थ ग्राम बूरा, सुतोल, कनोल, सिरकोट, मथकोट और मटई के ग्रामीणों ने सड़कों के न खुलने पर 10 अक्तूबर से ब्लॉक मुख्यालय पर आंदोलन शुरू करने का ऐलान किया है।
चालीस से अधिक गांव बेहाल
चमोली जिले के तल्ला दशोली पट्टी में चालीस से अधिक गांव अभी भी बेहाल हैं। हालत यह है कि मामूली बुखार की दवा के लिए भी 40 किमी दूर कर्णप्रयाग आना पड़ता है। हालांकि यहां से कई नामचीन लोग निकले हैं, जिनमें से डिप्टी स्पीकर डा. अनुसूया प्रसाद मैखुरी भी है, जिनका गांव मैखुरा भी यहीं हैं।
आपदा के बाद इन गांवों के संपर्क मार्ग बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए हैं, कहीं टूट रही चट्टानों के बीच जान हथेली पर रखकर छोटे वाहन चल सकते हैं, तो कहीं पैदल चलना भी खतरे से भरा है। ऐसे में बीमार और गर्भवती महिलाओं के परिजन काफी परेशान हो रहे हैं।
पांच हजार जिंदगियां खतरे में
यह है थराली के आठ गांवों को जोड़ने वाला हरमनी झूला पुल। जून में आई आपदा में पुल का एक पुश्ता ढह गया था। तब से प्रशासन यहां कभी ट्राली तो कभी वॉयर क्रेट दीवार लगाने की हवा-हवाई बात कर रहा है, लेकिन अब भी न ट्राली लगी और न वायर क्रेट दीवार बनी। पांच हजार ग्रामीणों की जिंदगी से जुड़े इस झूला पुल से बच्चों की शिक्षा, बीमारों का इलाज और युवाओं का रोजगार जुड़ा है। कोई व्यवस्था नहीं होने से ग्रामीण 20 किमी पैदल चलकर आवश्यक सामग्री ला रहे हैं।
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