बीएसएनएल बहुत बीमार, दम तोड़ने के कगार पर!
कुछ साल पहले इस कंपनी का वार्षिक राजस्व 40 हजार करोड़ रुपये और मुनाफा करीब दस हजार करोड़ रुपये था। मगर आज यह 8000 करोड़ रुपये से भी ज्यादा के घाटे में है।
कंपनी की यह हालत सरकारी उपेक्षा, सरकार द्वारा कंपनी के रिजर्व फंड के 19 हजार करोड़ रुपयों के दोहन और दबे छुपे निजी टेलीकॉम कंपनियों को फायदा पहुंचाने की वजह से हुई।
लेकिन बीएसएनएल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बीके उपाध्याय कंपनी के भविष्य को लेकर खासे आशान्वित हैं। उनके मुताबिक कुछ परेशानियां जरूर हैं, जिनका संज्ञान सरकार ने लिया है।
2002-2003 के� दौरान निजी टेलीकॉम ऑपरेटरों के साथ होड़ में बीएसएनएल की मोबाइल सेवा सेल वन और लैंड लाइन सेवा की लोकप्रियता खासी थी। 2005-06 में जहां सभी निजी टेलीकॉम सेवा प्रदाता कंपनियों का कुल राजस्व चालीस हजार करोड़ रुपये से कम था, तब अकेले बीएसएनएल इस आंकड़े को छू रही थी।
मगर बाद में यह पिछड़ती चली गई। 2006 तक निजी कंपनियों के पीओआई (प्वाइंट ऑफ इंटरकनेक्शन) ट्रंक एक्सचेंज केउपयोग के एवज में प्रति कॉल एडीसी (एक्सिस डेफिसिट चार्ज) के रूप में हर साल करीब पांच हजार करोड़ रुपये मिलते थे। लेकिन ट्राई ने इसे खत्म कर दिया।
इस घाटे की भरपाई के लिए सरकार को अपने यूएसओ फंड (यूनिवर्सल ऑब्लीगेटरी फंड) से प्रतिवर्ष दो हजार करोड़ रुपये कंपनी को देने थे। लेकिन यह रकम भी अभी तक नहीं मिली। सैम पित्रोदा समिति की रिपोर्ट भी ठंडे बस्ते में पड़ी हुई है।
भ्रष्टाचार और सरकार की उदासीनता
संचार मंत्रालय में फैले भ्रष्टाचार ने बीएसएनएल में जड़ता पैदा कर दी। अप्रैल 2006 में टेलीफोन सेवाओं में दरें घटाने की होड़ से कंपनी का राजस्व घटने लगा। सेवाओं के विस्तार और विकास के लिए जरूरी निवेश को सरकार ने हरी झंडी नहीं दी।
2007 में 9.60 करोड़ जीएसएम लाइन का प्रस्ताव अटक गया, बाद में 2.25 करोड़ लाइनों का काम इरिक्सन और नोकिया को दे दिया गया।
इसके अलावा बीएसएनल को अपने रिजर्व कोष से थ्री जी स्पेट्रम और बीडब्लूए की नीलामी में शामिल होने के बदले में सरकार को 19 हजार करोड़ रुपये देने पड़े। बीएसएनएल को उन क्षेत्रों का स्पेक्ट्रम लेना पड़ा जो व्यवसायिक दृष्टि से कतई लाभप्रद नहीं थे।
मुसीबत का साथी बीएसएनएल
चाहे सुनामी हो या उत्तराखंड त्रासदी। बीएसएनएल ने हमेशा ही एक भरोसेमंद साथी की भूमिका निभाई है। ग्रामीण, आदिवासी, पर्वतीय और दूरदराज के क्षेत्रों में बीएसएनएल की सेवा ही काम करती है। उत्तराखंड त्रासदी और सुनामी के समय बीएसएनएल की ही सेवा ने काम किया था।
बन चुका है सफेद हाथी
देश भर में फैला नेटवर्क इस समय सफेद हाथी बनता जा रहा है। करोड़ों की मशीनें और आधुनिक यंत्र बेकार पड़े हैं। सबसे सस्ती इंटरनेट सेवा देने के बावजूद सर्वर अक्सर डाउन रहने के कारण उसकी मांग घट गई है। शिकायतों की सुनवाई नहीं होती। अधिकतर कर्मचारी रिटायरमेंट के इंतजार में हैं।
38 हजार डिजिटल टेलीफोन एक्सचेंज
28 हजार एक्सचेंज इनमें से ग्रामीण क्षेत्रों में
12 हजार करोड़ दूरसंचार विभाग (डीओटी) पर बकाया
40 हजार करोड़ रुपये था 2005-06 में बीएसएनएल का राजस्व
08 हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा का घाटा है वर्तमान में
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