13 सितंबर को हो सकती है नरेंद्र मोदी की ताजपोशी, फिर कोपभवन में आडवाणी
नई दिल्ली, 11 सितम्बर 2013 | अपडेटेड: 00:22 IST
13 सितंबर को एक नये इतिहास को लिखने की बिसात आरएसएस ने तैयार कर दी और
बीजेपी उसपर चलने को तैयार है. यानी पहली बार दिल्ली छोड़ किसी राज्य के
मुख्यमंत्री पर संसदीय बोर्ड पीएम की उम्मीदवारी की मुहर लगायेगा. पहली बार
संसदीय बोर्ड में बैठे सबसे बुजुर्ग और सबसे अनुभवी नेता और जनसंघ से
बीजेपी तक की कमान संभाल चुके लालकृष्ण आडवाणी को मोदी के नाम पर सहमति
देनी होगी.
साथ ही मुरली मनोहर जोशी, वेंकैया नायडू और नितिन गडकरी जो कि बीजेपी के
अध्यक्ष रह चुके हैं, वह खामोशी से मोदी के नाम पर मुहर लगाएंगे. और लोकसभा
में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज को भी गुजरात के सीएम को अपना लीडर ही
नहीं देश का लीडर मानते हुए पीएम की उम्मीदवारी पर मुहर लगानी होगी.
यानी बीजेपी में जो अभी तक नहीं हुआ वह पहली बार होगा. और बीजेपी की इस नई बिसात को बनाने वाले संघ परिवार के सामने कई बैठको में लालकृष्ण कह चुके हैं कि बीजेपी में जो अब हो रहा है वह पहली बार हो रहा है. लेकिन महत्वपूर्ण है कि संघ ने भी पहली बार कहा है कि मौजूदा वक्त में देश भी एक खास बदलाव देख रहा है और यह बदलाव बीजेपी को करना होगा. असल में मोदी को लेकर जो बड़ी लकीर संघ ने खींची है उसका असर यह है कि दिल्ली में अभी तक केन्द्र की सियासत करने वाले तमाम नेताओं का कद छोटा हो गया है. और लोकप्रियता के पैमाने पर मोदी के नाम के आगे हर कोई नतमस्तक है.
भीष्म पितामह रूठे हैं?
बीजेपी में भीष्म पितामह की तर्ज पर मौजूद लालकृष्ण आडवाणी का करियर क्या 13 सितबंर के बाद खत्म हो जायेगा. यह सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि गुरु और गाईड की भूमिका में आने से लगातार इनकार करते आडवाणी को पहली बार मोदी के रूप में ऐसा आईना देखना पड़ेगा यह किसी ने सोचा ना होगा.
और इसी कारण आडवाणी को मनाने का सिलसिला मंगलवार शाम से ही शुरू हो गया. नितिन गडकरी ने आडवाणी से मुलाकात की और मुलाकात के तुरंत बाद नागपुर रवाना हो गये. नागपुर में गडकरी की मुलाकात सरसंघ चालक मोहन भागवत से होनी है. और इसी कड़ी में 12 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह आडवाणी से मिलेंगे. और अगर आडवाणी रूठे रहे तो फिर मोहन भागवत की घंटी आडवाणी जी के घर पर घनघनायेगी. और इससे पहले आडवाणी अपने हर नागपुर दौरे के दौरान जिस तरह कहते रहे हैं कि संघ के स्वयंसेवक के तौर पर ही उन्होंने सबकुछ पाया तो फिर बगावत का सवाल ही नहीं उठता है.
जानकारी के मुताबिक 13 सितंबर को संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य दिल्ली में हैं और राजनाथ सिंह ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुलवाने का जिम्मा और किसी को नहीं रामलाल जी को सौंपा है. रामलाल की भूमिका संघ की नुमाइन्दगी करना है. यानी बैठक राजनाथ सिंह बुला जरूर रहे होंगे लेकिन रामलाल जब पत्र लेकर संसदीय बोर्ड के सदस्यों के पास जाएंगे तो फिर इनकार कौन करेगा यह अपने आप में बड़ा सवाल है. लेकिन औपचारिक तौर पर राजनाथ सिंह 12 सितबंर को आडवाणी के अलावा मुरली मनमोहर जोशी, सुषमा स्वराज से भी मिलेंगे.
यानी संघ खुले तौर पर दिल्ली की गद्दी के लिये दिल्ली के नेताओं से ही जिस तरह रूठा हुआ है उसमें एक सावल यह भी है कि अगर संसदीय बोर्ड की बैठक के वक्त रूठे नेता नहीं पहुंचते हैं तो क्या होगा? हालाकि ऐसी परंपरा संघ के स्वयंसेवकों में रही नहीं है लेकिन समझना यह भी होगा कि मोहन भागवत के जन्म के वक्त आडवाणी संघ के सार्वजनिक जीवन में कदम रख चुके थे.
यानी बीजेपी में जो अभी तक नहीं हुआ वह पहली बार होगा. और बीजेपी की इस नई बिसात को बनाने वाले संघ परिवार के सामने कई बैठको में लालकृष्ण कह चुके हैं कि बीजेपी में जो अब हो रहा है वह पहली बार हो रहा है. लेकिन महत्वपूर्ण है कि संघ ने भी पहली बार कहा है कि मौजूदा वक्त में देश भी एक खास बदलाव देख रहा है और यह बदलाव बीजेपी को करना होगा. असल में मोदी को लेकर जो बड़ी लकीर संघ ने खींची है उसका असर यह है कि दिल्ली में अभी तक केन्द्र की सियासत करने वाले तमाम नेताओं का कद छोटा हो गया है. और लोकप्रियता के पैमाने पर मोदी के नाम के आगे हर कोई नतमस्तक है.
भीष्म पितामह रूठे हैं?
बीजेपी में भीष्म पितामह की तर्ज पर मौजूद लालकृष्ण आडवाणी का करियर क्या 13 सितबंर के बाद खत्म हो जायेगा. यह सबसे बड़ा सवाल है, क्योंकि गुरु और गाईड की भूमिका में आने से लगातार इनकार करते आडवाणी को पहली बार मोदी के रूप में ऐसा आईना देखना पड़ेगा यह किसी ने सोचा ना होगा.
और इसी कारण आडवाणी को मनाने का सिलसिला मंगलवार शाम से ही शुरू हो गया. नितिन गडकरी ने आडवाणी से मुलाकात की और मुलाकात के तुरंत बाद नागपुर रवाना हो गये. नागपुर में गडकरी की मुलाकात सरसंघ चालक मोहन भागवत से होनी है. और इसी कड़ी में 12 सितंबर को बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह आडवाणी से मिलेंगे. और अगर आडवाणी रूठे रहे तो फिर मोहन भागवत की घंटी आडवाणी जी के घर पर घनघनायेगी. और इससे पहले आडवाणी अपने हर नागपुर दौरे के दौरान जिस तरह कहते रहे हैं कि संघ के स्वयंसेवक के तौर पर ही उन्होंने सबकुछ पाया तो फिर बगावत का सवाल ही नहीं उठता है.
जानकारी के मुताबिक 13 सितंबर को संसदीय बोर्ड के सभी सदस्य दिल्ली में हैं और राजनाथ सिंह ने संसदीय बोर्ड की बैठक बुलवाने का जिम्मा और किसी को नहीं रामलाल जी को सौंपा है. रामलाल की भूमिका संघ की नुमाइन्दगी करना है. यानी बैठक राजनाथ सिंह बुला जरूर रहे होंगे लेकिन रामलाल जब पत्र लेकर संसदीय बोर्ड के सदस्यों के पास जाएंगे तो फिर इनकार कौन करेगा यह अपने आप में बड़ा सवाल है. लेकिन औपचारिक तौर पर राजनाथ सिंह 12 सितबंर को आडवाणी के अलावा मुरली मनमोहर जोशी, सुषमा स्वराज से भी मिलेंगे.
यानी संघ खुले तौर पर दिल्ली की गद्दी के लिये दिल्ली के नेताओं से ही जिस तरह रूठा हुआ है उसमें एक सावल यह भी है कि अगर संसदीय बोर्ड की बैठक के वक्त रूठे नेता नहीं पहुंचते हैं तो क्या होगा? हालाकि ऐसी परंपरा संघ के स्वयंसेवकों में रही नहीं है लेकिन समझना यह भी होगा कि मोहन भागवत के जन्म के वक्त आडवाणी संघ के सार्वजनिक जीवन में कदम रख चुके थे.
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