EXCLUSIVE: दंगे में बुजुर्गों ने ऐसे बचाई कइयों की जान
उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बागपत से भी
हिंसा भी खबरें आईं। कय्यूम बागपत के वाजिदपुर में रविवार की रात हुई 15
साल के शोएब की हत्या और तीन लोगों पर हमले का चश्मदीद है। वह वाजिदपुर से
पलायन कर बागपत में रिश्तेदारी में शरण लेने पहुंचा है।
रविवार की रात का खौफनाक मंजर बयां करते-करते उसका गला रुंध जाता है। हाथ से आंसुओं को पोंछते हुए उसने कहा कि, चौधरी फरिश्ता बनकर आए। अगर वे न आते, तो न जाने क्या होता। बहुत लोग मारे जाते। पुलिस तो बहुत देर से पहुंची, तब तक हमलावरों को चौधरियों ने ही रोका।
हमलावरों ने कोई नशा कर रखा था। सबके हाथों में लंबे-लंबे तमंचे थे। वे 25-30 थे। सबके सिर पर खून का जुनून सवार था। मरने-मारने पर उतारू थे। हम लोग चुपचाप इबादत कर रहे थे।
उन्होंने आते ही गोलियां मारना शुरू कर दिया, लेकिन चौधरियों ने उन्हें रोका। जब नहीं माने तो डांटा और जब डांट भी नहीं सुनी तो बुजुर्ग चौधरी उनके पैरों में गिर गए। वे बोले, तुम्हें हमारी लाश से होकर गुजरना होगा।
कय्यूम ने बताया कि चौधरी शाहमल खुराफातियों के पैर पकड़कर जोर-जोर से चीख रहे थे। कह रहे थे कि अगर इन लोगों को कुछ हुआ तो अच्छा नहीं होगा। ये हमारे भाई हैं, इन्होंने कुछ नहीं बिगाड़ा है, इन्हें क्यों मारते हो?
लेकिन वे सुनने को तैयार नहीं थे। तीन-चार चौधरी उनके आगे लेट गए। बोले, पहले हमें मारो। इस बीच कई लोगों ने फायर खोल दिए। चौधरी चिल्लाते रहे, इसलिए गोलियां कम चलीं। हम चौधरियों का अहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे।
बाद में जब हम घर छोड़कर चले, तब भी चौधरियों ने बहुत रोका लेकिन डर के मारे दिल नहीं माना। गांव में हमारे 250 परिवार हैं। सभी लोग अपना गांव छोड़कर रिश्तेदारी में चले गए हैं।
कय्यूम कहते हैं, पुराने लोग भाईचारा और आपसदारी समझते हैं, नौजवानों को भी समझना चाहिए।
रविवार की रात का खौफनाक मंजर बयां करते-करते उसका गला रुंध जाता है। हाथ से आंसुओं को पोंछते हुए उसने कहा कि, चौधरी फरिश्ता बनकर आए। अगर वे न आते, तो न जाने क्या होता। बहुत लोग मारे जाते। पुलिस तो बहुत देर से पहुंची, तब तक हमलावरों को चौधरियों ने ही रोका।
हमलावरों ने कोई नशा कर रखा था। सबके हाथों में लंबे-लंबे तमंचे थे। वे 25-30 थे। सबके सिर पर खून का जुनून सवार था। मरने-मारने पर उतारू थे। हम लोग चुपचाप इबादत कर रहे थे।
उन्होंने आते ही गोलियां मारना शुरू कर दिया, लेकिन चौधरियों ने उन्हें रोका। जब नहीं माने तो डांटा और जब डांट भी नहीं सुनी तो बुजुर्ग चौधरी उनके पैरों में गिर गए। वे बोले, तुम्हें हमारी लाश से होकर गुजरना होगा।
कय्यूम ने बताया कि चौधरी शाहमल खुराफातियों के पैर पकड़कर जोर-जोर से चीख रहे थे। कह रहे थे कि अगर इन लोगों को कुछ हुआ तो अच्छा नहीं होगा। ये हमारे भाई हैं, इन्होंने कुछ नहीं बिगाड़ा है, इन्हें क्यों मारते हो?
लेकिन वे सुनने को तैयार नहीं थे। तीन-चार चौधरी उनके आगे लेट गए। बोले, पहले हमें मारो। इस बीच कई लोगों ने फायर खोल दिए। चौधरी चिल्लाते रहे, इसलिए गोलियां कम चलीं। हम चौधरियों का अहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे।
बाद में जब हम घर छोड़कर चले, तब भी चौधरियों ने बहुत रोका लेकिन डर के मारे दिल नहीं माना। गांव में हमारे 250 परिवार हैं। सभी लोग अपना गांव छोड़कर रिश्तेदारी में चले गए हैं।
कय्यूम कहते हैं, पुराने लोग भाईचारा और आपसदारी समझते हैं, नौजवानों को भी समझना चाहिए।
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