Thursday, 12 September 2013

दिल्ली गैंगरेप: 'उसकी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी होने का दिन है'

दिल्ली गैंगरेप: 'उसकी आख़िरी ख़्वाहिश पूरी होने का दिन है'

 शुक्रवार, 13 सितंबर, 2013 को 10:45 IST तक के समाचार

'निर्भया' के आख़िरी शब्द आज भी उनकी माँ के ज़ेहन में कौंधते हैं.
बीबीसी से बातचीत के दौरान उनकी माँ ने कहा, ''लगता है किसी आहट के साथ वो वापस आ जाएगी और जब वो नहीं आती तो उसकी आख़िरी ख्वाहिश ही बेचैन कर देती है. आज उस आख़िरी ख्वाहिश के पूरा होने का दिन है.''
निर्भया की माँ ने आगे कहा, ''टूटती साँसों को जोड़कर उसने कहा था कि उसे इंसाफ़ मिलना चाहिए. आज न सिर्फ़ उसे इंसाफ़ मिल रहा है बल्कि इंसाफ़ में लोगों का नया भरोसा भी पैदा हो रहा है.''
दिल्ली की तारीख़ को स्याह करने वाले उस दिन को निर्भया की माँ यूँ याद करती हैं, "उस दिन जाते-जाते, चार बजे जब वो गई, उसने कहा, 'बॉय मम्मी, मैं दो-तीन घंटे में आ जाऊंगी', आज भी उसकी आवाज़ गूँजती है. कभी-कभी आस बंधती है कि शायद वो आ जाए."
दो-तीन घंटे में लौटने का वादा करके गई निर्भया नहीं लौटीं और न ही उनके घर की ख़ुशियाँ.
माँ याद करती है, "उस समय हम एक सामान्य परिवार थे. सामान्य तरीक़े से रहते थे. जितना था उतने में ख़ुश थे. आज सबकुछ है लेकिन सब न के बराबर है. खाने चलो तो आंसू, सोने जाओ तो आँसू, भगवान ऐसा किसी के साथ न करे."
निर्भया की आख़िरी ख़्वाहिश बयाँ करते हुए माँ कहती है, "उसने बोला था सज़ा क्या उन्हें तो ज़िंदा जला देना चाहिए. अगर उन्हें फाँसी की सज़ा हो जाती है तो शायद उसकी आख़िरी इच्छा पूरी हो जाए."
तो क्या निर्भया के अपराधियों को सज़ा मिलने से हिंदुस्तान के हालात बदलेंगे? कोई फ़र्क़ पड़ेगा या फिर सब पहले जैसे ही चलता रहेगा?
माँ उम्मीद करती है, "अगर इनको सही मायने में सज़ा मिल जाती है, तो हम पक्का तो नहीं कह सकते लेकिन फ़र्क़ ज़रूर पड़ेगा. अपराधियों को फाँसी दिए जाने का जनता में बढ़िया संदेश जाएगा. एक बार ऐसा करने से पहले लोगों के मन में ख़्याल तो ज़रूर आएगा कि हम करेंगे तो फंसेंगे."
एक बेटी के साथ दरिंदगी हुई और पूरा हिंदुस्तान खड़ा हो गया. हर दिला रोया, हर जुबाँ बोली. तो क्या ये बदलाव पूरा है. नहीं, माँ के लिए ये बदलाव अधूरा है.
बदलाव के बारे में माँ कहती है, "लगता तो नहीं है कि हिंदुस्तान बदल रहा है लेकिन बदलाव की थोड़ी सी झलक दिखती है.पहले लड़की के माँ बाप यह सोचकर बात छुपा लेते थे कि समाज में लड़की के नाम पर इसका बुरा असर पड़ेगा लेकिन अब कोई केस होता है तो तुरंत रिपोर्ट करते हैं. इतना बदलाव तो हुआ लेकिन इसके साथ यह बदलाव भी आ जाता कि कार्रवाई तुरंत होने लगे, अभियुक्त पकड़े जाने लगें और उन्हें समय से सज़ा दी जा सके तो बेहतर होता है."
निर्भया के दर्द को आवाज़ मिली तो इंसाफ़ भी मिल रहा है. लेकिन बहुतों की पीड़ा दबी रह जाती है.
ऐसी बेटियों, माओं और बहनों को हौसला देते हुए निर्भया की माँ कहती हैं, "अब ख़ामोश नहीं रहना चाहिए. कितने दिन तक वे इस चीज़ को छुपाएंगी, कितने दिन तक दबाएंगी. और कहाँ तक दबाएंगी. इसलिए उन्हें शर्माने की ज़रूरत नहीं है. उनके माँ बाप को भी शर्माने की ज़रूरत नहीं है. शर्माना तो उन मर्दों को चाहिए जो ऐसा करते हैं, उनकी आँख में शर्म होनी चाहिए. शर्म और डर छोड़कर बाहर आएं, रिपोर्ट करे, उनके ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ें. उन्हें सज़ा दिलवाएँ."
अदालत निर्भया के दोषियों को उनका अंज़ाम बता देगी. लेकिन इस अपराध के साथ निर्भया के नाम से शुरू हुई लड़ाई नहीं रुकेगी. क्योंकी माँ भरोसा करती हैं, "जिस तरह इस घटना के बाद लोग एकजुट हुए, इसे एक मिसाल बना दिया उसी तरह संघर्ष जारी रखे और ऐसी घटनाओं के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाए. हम भी कोशिश करेंगे कि जिस तरह लोग हमारे साथ खड़े रहे उसी तरह हम भी उनके साथ खड़े हो पाएं और उनके साथ आवाज़ उठाएं."

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