Thursday, 12 September 2013

EXCLUSIVE: इन बस्तियों में कोई रोने वाला भी न बचा

EXCLUSIVE: इन बस्तियों में कोई रोने वाला भी न बचा

muzaffarnagar violence

घरों से उठते धुएं, ताश के पत्तों की तरह बिखरी घरों की ईंटे किसी भूकंप की तबाही नहीं हैं। मुजफ्फरनगर में चार दिन पहले यहां उन्मादियों की ऐसी सुनामी आई कि सबकुछ बहा ले गई। किसी की जान गई तो कोई अनाथ हो गया। हजारों लोग दर-बदर हो गए। उपद्रवियों का कहर इस कदर था कि दिलोदिमाग में अभी भी खौफ का वही मंजर तारी है।

कल तक जहां खुशियां थीं, आज वहां सन्नाटा है। बस्तियां खाली हो गईं, कोई रोने वाला भी नहीं है। जिसे जहां मौका मिला जान बचाने के लिए दुबक गया। कई परिवार तो ऐसे बिछड़े की अभी तक नहीं मिल पाए।

‘अमर उजाला’ टीम कुछ ग्रामीणों की मदद से ऐसी बस्तियों में पहुंची, जहां अभी तक न पुलिस पहुंच सकी है और न ही अफसर।

भौराकलां का गांव मुंडभर। यह वही गांव है, जहां से निकले कर्मयोगी संत स्वामी कल्याण देव ने धर्म और संप्रदाय की सीमाएं लांघकर निस्वार्थ मानव सेवा का संदेश दिया था।

आठ सितंबर की रात बस्ती फूंक दी गई। धर्मस्थल के कई हिस्से तोड़ दिए गए।
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फुगाना इलाके के बहावड़ी गांव ने भी ऐसा ही कहर झेला। 1200 आबादी की बस्ती खाली पड़ी है। यहां हुई हिंसा के निशान इंसानियत को कलंकित कर रहे हैं।

यहां जिंदगियों की चीख दीवारों से टकराकर खामोश हो गई। आर्मी पहुंची, किसी तरह जिंदा बचे इंसानों को निकाला गया। हमने गांव छोड़ चुके कल्लू से किसी तरह फोन पर संपर्क किया। वह इतना घबराया हुआ है कि मुंह से शब्द भी नहीं निकल रहे।

उसने बताया कि अब वहां आने के लिए बचा ही क्या है। सबसे ज्यादा दिल दहलाने वाला वाकया लांक गांव का है। गांव के बाहरी छोर पर एक दोमंजिला मकान इस कदर जमींदोज है, जैसे यहां कोई भूकंप आया हो। यह अकेला ऐसा मकान नहीं है, पूरी बस्ती खाक कर दी गई।

धुआं अभी भी घरों से रह-रहकर उठ रहा है। बेजुबान जीव भूख-प्यास से तड़प रहे हैं। शाहपुर के कुटबा में भी उसी दिन बलवाइयों ने कहर बरपाया। पांच जानें चली गईं। लोग बेघर हो गए। सेना नहीं पहुंचती तो यहां जान-माल की और अधिक हानि होती। धर्मस्थल पर उन्माद के निशान भी साफ दिखते हैं।

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