Thursday, 12 September 2013

जिन्ना : किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

किस मोड़ पर खड़ा है जिन्ना के ख़्वाबों का पाकिस्तान?

 गुरुवार, 12 सितंबर, 2013 को 09:19 IST तक के समाचार

मोहम्मद अली जिन्ना और महात्मा गाँधी
पाकिस्तानी अपने राष्ट्र निर्माता मोहम्मद अली जिन्ना की मौत के 65 साल बाद भी उनके नज़रिए और खोए हुए भाषणों को खोज रहे हैं.
पाकिस्तानियों को इस बात पर यक़ीन करने के लिए प्रेरित किया जाता रहा है कि जिन्ना ने पाकिस्तान का निर्माण इस्लाम के नाम पर एक धार्मिक देश के रूप में किया था. हालाँकि कई लोग इससे असहमत हैं और मानते हैं कि जिन्ना एक मुसलमानों की बहुसंख्यक आबादी वाले धर्मनिरपेक्ष देश का निर्माण करना चाहते थे.

तालिबानी चरमपंथ और इस्लामी अतिवाद के इस दौर में पिछले कुछ सालों से जिन्ना के इन दोनों नज़रियों पर बहस तेज़ हुई है. इस बहस के केंद्र बिंदु में 1947 में आज़ादी से कुछ दिन पहले दिए गए जिन्ना के भाषण भी हैं. इन भाषणों के प्रतिलेख पाकिस्तान में मौज़ूद हैं लेकिन स्पष्ट आवाज़ में इनकी रिकॉर्डिंग वहाँ उपलब्ध नहीं हैं.
वैसे तो पाकिस्तान की सरकारी रेडियो सर्विस 'रेडियो पाकिस्तान' के पास टूटी हुई आवाज़ में इन भाषणों की कुछ पुरानी रिकॉर्डिंग हैं. इनमें पाकिस्तान के गठन से तीन दिन पहले 11 अगस्त को कराची में संविधान सभा के समक्ष दिया गया जिन्ना का महत्वपूर्ण भाषण नहीं है.
पाकिस्तान के उदारवादियों के लिए यह एक महत्वपूर्ण भाषण था जिसमें जिन्ना ने बेहद स्पष्ट शब्दों में अपने सपनों के देश के बारे में जिक्र करते हुए कहा था कि जो देश वो बनाएंगे वह एक सहिष्णु समावेशी और धर्मनिरपेक्ष देश होगा.

इस भाषण में जिन्ना ने कहा था, "आप स्वतंत्र हैं. पाकिस्तान में आप अपने मंदिरों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं, आप अपनी मस्जिदों में जाने के लिए स्वतंत्र हैं या आप अपने किसी भी अन्य प्रकार के पूजास्थल में जाने के लिए स्वतंत्र हैं. आप चाहे जिस भी धर्म, जाति या पंथ के हों, देश को इस बात से कोई मतलब नहीं होगा."

छेड़छाड़

मोहम्मद अली जिन्ना, लॉर्ड माउंटबेटन और श्रीमति माउंटबेटन
दस्तावेज़ बताते हैं कि उस वक़्त जिन्ना के करीब रहने वाले कट्टरपंथी धार्मिक नेताओं को उनका यह भाषण अच्छा नहीं लगा था और उन्होंने इसे अगले दिन के अख़बारों से लगभग गायब करा दिया था. पाकिस्तान की अगली सैन्य सरकारों पर तो जिन्ना के इन भाषणों को नज़रअंदाज़ करने और अधिकारिक दस्तावेज़ों से हटवाने के प्रयास करने तक के आरोप लगे.

पाकिस्तान के कुछ नेता जिन्ना के उस भाषण से इतना असहज क्यों थे? बहुत से लोग मानते हैं कि ये उनकी भारत विरोधी और हिंदू विरोधी विचारधारा के ज़रिए सत्ताकेंद्र बनाने की नीतियों के ख़िलाफ़ थी.
1970 और 1980 के दशक में जब पाकिस्तान का इस्लामीकरण हो रहा था और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर नए कठिन क़ानून लागू किए जा रहे थे तब उस भाषण के विवादित हिस्सों को आम लोगों की पहुँच से दूर ही कर दिया गया. ये जिन्ना की छवि बदले जाने का दौर था.
उन्हें एक पश्चिमी सोच वाले धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के बजाए एक इस्लामवादी नेता के रूप में स्थापित किया जा रहा था और इसी बीच जिन्ना के उस ऐतिहासिक भाषण की संभावित ऑडियो रिकॉर्डिंग गायब हो गई. जिन्ना के पाकिस्तान के विचार को और भी अव्यवस्थित कर दिया गया.

देश के कट्टरपंथी सवाल करने लगे कि क्या क़ायद-ए-आज़म ने वे शब्द कहे भी थे या नहीं या कहे थे तो क्या उस वक़्त वे अपने होशो-हवास में थे और अगर कहे थे तो क्या उनके शब्दों का कोई और अर्थ भी हो सकता है. रेडियो पाकिस्तान के पूर्व महानिदेशक मुर्तज़ा सोलांगी इसे जानबूझकर इतिहास मिटाने का आपराधिक मामला मानते हैं.
हालाँकि वे पूरे विश्वास के साथ ये दावा नहीं करते हैं कि पाकिस्तान के पास उस ऐतिहासिक भाषण की ऑडियो रिकॉर्डिंग कभी थी भी या नहीं. हालाँकि इस भाषण की कॉपी हासिल करने के अपने पिछले कुछ सालों के प्रयासों के बाद वे ये दावा ज़रूर करते हैं कि यदि ये रिकॉर्डिंग कभी थी तो इसे पाकिस्तान ने जानबूझकर नष्ट कर दिया होगा.

भारत में आरटीआई

मोहम्मद अली जिन्ना
इस ऑडियो की खोजबीन में सोलांगी ने लंदन में बीबीसी से संपर्क किया. उन्हें बताया गया कि बीबीसी के अभिलेखों में जिन्ना के भाषणों के टेप नहीं है. फिर उन्होंने भारत में आल इंडिया रेडियो से संपर्क किया. आल इंडिया रेडियो ने उन्हें बताया कि उनके पास भाषण का ऑडियो है.
लेकिन इन भाषणों को उपलब्ध कराने में भारत ने दो साल का वक़्त और लिया. आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष चंद्र अग्रवाल के प्रयासों से एआईआर को इन्हें सार्वजनिक करने के लिए मजबूर होना पड़ा. इसलिए जब हाल ही में आल इंडिया रेडियो ने पाकिस्तान रेडियो को जिन्ना के 1947 में दिए गए दो भाषणों की असली रिकॉर्डिंग दी तब इसे एक कामयाबी के रूप में देखा गया.

हालाँकि सोलांगी को निराशा ही हाथ लगी क्योंकि उन दो भाषणों में 11 अगस्त 1947 को दिया गया भाषण नहीं था. जो रिकॉर्डिंग भारत ने पाकिस्तान को उपलब्ध करवाईं वे पहले से ही पाकिस्तान रेडियो के आर्काइव में थी. सोलांगी कहते हैं कि बस अब ये रिकॉर्डिंग बेहतर आवाज़ में हैं.
जो दो भाषण दिए गए हैं उनमें वर्तमान भारत की सीमाओं में दिया गया जिन्ना का अंतिम भाषण भी शामिल है. इस जिन्ना ने तीन जून 1947 को दिल्ली में दिया था. दूसरी रिकॉर्डिंग 14 अगस्त 1947 को संविधान सभा के समक्ष दिए गए जिन्ना के प्रचलित भाषण की है. इस भाषण को आल इंडिया रेडियो को साउंड इंजीनियरों ने रिकॉर्ड किया था.
उन्हें इस भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए दिल्ली से कराची बुलाया गया था क्योंकि तब जन्म ले रहे पाकिस्तान के पास ऐसे भाषण को रिकॉर्ड करने के लिए रेडियो स्टेशन उपलब्ध नहीं था. माना जाता रहा है कि आल इंडिया रेडियो के इंजीनियरों ने कराची में दिए गए जिन्ना के दोनों भाषणों को रिकॉर्ड किया था. इनमें 11 अगस्त को दिया गया वह ऐतिहासिक भाषण भी शामिल था.
सोलांगी कहते हैं, "उन्होंने पहले मुझसे कहा था कि उनके पास 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भी है लेकिन अब वे इस बारे में गोलमोल जबाव दे रहे हैं. बाकी लोगों से उन्होंने कहा कि ये उनके पास नहीं है. इसलिए अभी हम पुख़्ता तौर पर ये नहीं कह सकते कि ये रिकॉर्डिंग उनके पास है या नहीं."

इस्लामी पहचान

कराची में जिन्ना की मजार
कुछ पाकिस्तानी शक करते हैं कि इसका संबंध भारत में प्रचलित बँटवारे और उसके दौरान हई हिंदू-मुस्लिम हिंसा के लिए जिन्ना को ज़िम्मेदार बताने वाली धारणा से भी हो सकता है. जिन्ना को भारत का विभाजन कराने वाला व्यक्ति बताया जाता रहा है.

हालाँकि यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं है कि यदि भाषण की रिकॉर्डिंग है तो फिर जब भारत के अधिकारियों ने बाकी दो भाषण उपलब्ध करवा दिए तो फिर 11 अगस्त की रिकॉर्डिंग उपलब्ध क्यों नहीं करवाई. इस्लामाबाद स्थित थिंक टैंक 'जिन्ना इंस्टीट्यूट' के निदेशक रज़ा रूमी मानते हैं कि भारतीय अधिकारी जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं.
वे कहते हैं, "भारतीय अफ़सरशाही में मौज़ूद लालफीताशाही के मद्देनज़र जिन्ना के रिकॉर्डिंग माँगने की गुज़ारिश का काग़ज़ों में खो जाना कोई चौंकाने वाली बात नहीं होगी. जिन्ना के 11 अगस्त के भाषण की रिकॉर्डिंग भारत और पाकिस्तान के इतिहास के छात्रों के लिए बेहद महत्वपूर्ण हो सकती हैं."
यदि ये रिकॉर्डिंग कभी मिल भी गईं तो क्या ये पाकिस्तान में हाशिये पर रह रहे उदारवादी लोगों को कट्टरपंथियों और धार्मिक अतिवादियों से बहस जीतकर पाकिस्तान को गहरी इस्लामी पहचान से मुक़्त करने में मदद कर पाएंगी?
सोलांगी कहते हैं, "यह धार्मिक कट्टरपंथियों को इस बात पर राज़ी करने के लिए नहीं है कि जिन्ना एक अलग तरीके का पाकिस्तान चाहते थे बल्कि ये खंडित इतिहास को सुधारकर लोगों को यह सोचने देने के लिए है कि वे किस तरह का पाकिस्तान चाहते हैं."

जिन्ना, भारत, विभाजन, आज़ादी!

गांधी और जिन्ना
भारत में जिन्ना विभाजन के ज़िम्मेदार समझे जाते रहे हैं
बात जुलाई 2006 की है जब जसवंत सिंह ने अपनी आत्मकथा “ए कॉल टू ऑनर: इन सर्विस ऑफ़ इमर्जेंट इंडिया” में ज़िक्र किया कि नरसिंह राव के काल में प्रधानमंत्री निवास में एक ऐसा भेदी भी था जो अमरीकियों को ख़ुफ़िया जानकारी दिया करता था.
इस बात पर एक हंगामा खड़ा हो गया. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने जसवंत सिंह को चैलेंज किया कि वह उस घर के भेदी का नाम बताएं.
जवाब में मनमोहन सिंह को जसवंत सिंह की ओर से बिना हस्ताक्षर का एक पत्र भेजा गया जिसमें यह स्वीकार किया गया कि उन्होंने प्रधानमंत्री हाउस में अमरीकी जासूस की मौजूद की बात सिर्फ़ शक और अनुमान की बुनियाद पर की थी.
हालांकि अगर जसवंत सिंह चाहते तो वह पारंपरिक राजनेता के तौर पर ये कह कर भी जान छुड़ा सकते थे कि वह जल्द ही या उचित समय पर अमरीकी जासूस का नाम बताएंगे.
जसवंत सिंह की गणना उन गिने चुने वरिष्ठ राजनेताओं में होती है जिन्हें हमेशा वित्त, रक्षा और विदेश मंत्रालय जैसे संवेदनशील मंत्रालय मिलते रहे हैं.
वर्ष 2001 में उन्हें बेहतरीन सांसद के पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया.

बिना पढ़े ही...

इस स्तर का आदमी जब भारत में मोहम्मद अली जिन्ना जैसे विवादास्पद व्यक्तित्व के बारे में अपनी ताज़ा किताब ‘जिन्ना, भारत, विभाजन, आज़ादी’ में परंपरा से हट कर कोई बात करता है और जिन्ना को सेक्युलर, एक महान भारतीय और विभाजन का ज़िम्मेदार होने से ख़ारिज करने का ऐलान करता है तो उस पर फ़ौरन प्रतिक्रिया के बजाए किताब को पढ़ कर उस पर सकारात्मक और नकारात्मक राय क़ायम करना ज़्यादा उचित होता.
भारतीय जनता पार्टी की जिस कमेटी ने 30 साल से पार्टी में शामिल जसवंत सिंह जैसे सीनियर आदमी के निष्कासन का फ़ैसला किया है उससे क्या ये आशा रखी जा सकती है कि उस कमेटी ने फ़ैसला देने से पहले 17 अगस्त को रिलीज़ होने वाली इस किताब को शुरू से आख़िर तक पढ़ा होगा?
जसवंत सिंह ने अपनी ताज़ा किताब की ऐडवांस कॉपी जिन लोगों को भेजी उनमें लालकृष्ण आडवाणी भी शामिल हैं. ये बात इसलिए भी समझ में आती है क्योंकि एलके आडवाणी ने 2005 में कराची में मोहम्मद अली जिन्ना के मज़ार पर हाज़री देने के बाद कहा था कि जिन्ना उन लोगों में शामिल हैं जो न सिर्फ़ सेक्युलर थे बल्कि उन्होंने अपने हाथों इतिहास रचा.
आडवाणी ने जिन्ना के 11 अगस्त 1947 के भाषण का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने राष्ट्र और निजी विश्वास को अलग अलग ख़ानों में रखने की बात की थी.
हिंदुत्व के स्तंभ और “जो हिंदू मत पर बात करेगा वही देश पर राज करेगा” जैसे नारों के तले जीवन भर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का जाप करने वाले भाजपा अध्यक्ष के मुंह से जिन्ना के सेक्युलर और इतिहास रचने वाले व्यक्ति होने की बात आरएसएस के लिए एक बम से कम न थी.
और इससे भी ज़्यादा हैरान करने वाली बात ये थी कि आडवाणी ने ये कहते हुए भाजपा के अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया कि जिन्ना के बारे में वह अपने विचारों पर क़ायम हैं.
भारतीय अखंडता का झंडा उठाने वाली आरएसएस की ओर से आडवाणी की जो ले दे हुई वह तो अपनी जगह है लेकिन सेक्युलर कांग्रेस भी आडवाणी की निजी राय का बोझ न सह सकी और उसके प्रवक्ता अभिषेक सिंघवी ने जिन्ना को सेक्युलर कहने वाले आदमी के बयान पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अब आडवाणी को ये भी बताना चाहिए कि उनके अनुसार सेक्युलर शब्द का क्या अर्थ है.

निजी राय

मज़े की बात तो ये है कि आडवाणी को भाजपा ने लोक सभा के पिछले चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर पेश किया और भाजपा की हार के बाद वह संसद में विपक्ष के नेता हैं, जबकि जसवंत सिंह को पार्टी से निकाल दिया गया. हालांकि जसवंत सिंह कहते ही रह गए कि ये किताब उनकी निजी राय और शोध है और इसका भाजपा की नीति या पक्ष से कोई लेना देना नहीं है.
कोई ये भी नहीं कह सकता है कि आडवाणी का मांसिक संतुलन ठीक नहीं है या जसवंत सिंह सठिया गए हैं. उनमें से एक की ख्याति उग्रवादी विचारधारा के लिए है और दूसरे की शोहरत ख़ुद भाजपा में ही एक उदारवादी प्रजातांत्रिक की है.
विचार और पृष्ठभूमि के इतने बड़े अंतर के बावजूद अगर ये दोनों नेता मोहम्मद अली जिन्ना के बारे में एक जैसे विचार रखते हैं तो जिन्ना के जीवन के कुछ पहलू तो ज़रूर ऐसे होंगे जो छह दशक बीत जाने के बाद भी ऐसे तजुर्बेकार और कट्टर राजनीतिक विचार रखने वाले व्यक्तियों का विचार बदल रहे हैं.
अच्छी बात ये है कि कम से कम भारत में शैक्षणिक और शोध कार्य उस वयस्कता के स्तर पर पहुंच रहे हैं जहां अहं और राजनीतिक मसलेहत को एक ओर रख कर अपने विरोधियों पर भी ईमानदारी या परंपरा से हट कर गंभीरता से शोध की कोशिश हो रही है.
जबकि पाकिस्तान में आज भी अगर कोई ज़िम्मेदार शोधकर्ता विभाजन, गांधी, नेहरू या मुजीब को परंपरागत विचारधार से अलग होकर तथ्यों की कसौटी पर रख कर परखने की कोशिश करे तो उसे स्वयं को ग़द्दार, देश द्रोही, भारतीय एजेंट या रॉ का एजेंट कहलवाने और भर्त्सनापूर्ण बयानों और प्रदर्शन के लिए मानसिक रूप से तैयार रहने की ज़रूरत है.


जिन्ना का भाषण भारत से 'गायब'

 शनिवार, 9 जून, 2012 को 15:22 IST तक के समाचार

पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन मोहम्मद अली जिन्ना का भाषण ढूंढ रहा है.
भारत के सरकारी रेडियो ‘ऑल इंडिया रेडियो’ यानी एआईआर ने बीबीसी को बताया है कि उसके पास पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के वर्ष 1947 में दिए गए भाषण की रिकॉर्डिंग नहीं है.
पाकिस्तान के सरकारी प्रसारक, पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन ने एआईआर से वो ऐतिहासिक भाषण मांगा था जिसमें जिन्ना ने कहा था कि बिना किसी सरकारी दखल के लोग किसी भी मजहब के अनुयायी बने रह सकते हैं और पाकिस्तान एक धर्मनिरपेक्ष देश रहेगा जिसमें सभी को अपने मजहब के पालन की छूट होगी.
जिन्ना ने पाकिस्तान के बनाए जाने की घोषणा के तीन दिन पहले संविधान सभा को संबोधित किया था.
वहीं ऑल इंडिया रेडियो के महानिदेशक एल डी मंड्लोई ने बीबीसी को बताया, “एक विशेष तिथि पर की गई रिकॉर्डिंग के बारे में मुझे पाकिस्तान ब्रोडकास्टिंग कॉर्पोरेशन से फोन आया था, लेकिन हमारे पास वो टेप नहीं है.”

बीबीसी से गुजारिश

मंड्लोई ने कहा कि वो अब इसकी जानकारी प्रसार भारती को देंगे और ये सूचना पाकिस्तान को दी जाएगी.
"आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपने मस्जिदों में या और पूजा के किसी भी स्थान में जाने के लिए पाकिस्तान में आजाद हैं."
मोहम्मद अली जिन्ना का भाषण
पाकिस्तान के अधिकारियों के मुताबिक उन्होंने इस रिकॉर्डिंग के लिए पहले बीबीसी से संपर्क किया था.
पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के महानिदेशक मुर्तजा सोलंगी ने भारत की समाचार एजंसी पीटीआई को बताया कि बीबीसी भी अपने आर्काइव में इस रिकार्डिंग को नहीं ढूंढ पाया.
सोलंगी ने कहा, “ये भाषण उन लोगों के लिए बहुत जरूरी है जो अपने देश पाकिस्तान को, एक आधुनिक, बहुलवादी और लोकतांत्रिक देश बनाना चाहते हैं.”

पाकिस्तान में भी नहीं मिला

भाषण में जिन्ना ने कहा था कि, “आप आजाद हैं; आप अपने मंदिरों में जाने के लिए आजाद हैं, आप अपने मस्जिदों में या और पूजा के किसी भी स्थान में जाने के लिए पाकिस्तान में आजाद हैं.”
उन्होंने कहा था कि, “आप किसी भी मजहब, जाति या संप्रदाय से ताल्लुक रखते हों, सरकार का इससे कोई लेनादेना नहीं है.”
पाकिस्तान ब्रॉडकास्टिंग कॉर्पोरेशन के महानिदेशक मुर्तजा सोलंगी के मुताबिक वर्ष 1947 में भारत का वो हिस्सा जो अब पाकिस्तान है, वहां के रेडियो स्टेशन्स में रिकॉर्डिंग की उचित सुविधाएं नहीं थीं, इसलिए वे जिन्ना का ये भाषण रिकॉर्ड नहीं कर पाए.


क़ायदेआज़म जिन्ना का घर बम धमाके में तबाह

 शनिवार, 15 जून, 2013 को 15:42 IST तक के समाचार

ज़्यारत रेसीडेसी,पाक
जिन्ना दो महीने तक इस मकान में रहे थे.
पाकिस्तान में अधिकारियों का कहना है कि बलूचिस्तान प्रांत में स्थित देश के संस्थापक क्लिक करें मोहम्मद अली जिन्ना का घर बम धमाके में जलकर तबाह हो गया है.
प्रांत के अतिरिक्त डिप्टी कमिश्नर नसीब काकड़ ने बीबीसी को बताया कि पिछली रात ज़्यारत टाउन में क़रीब के पहाड़ियों से कुछ हथियारबंद हमलावर क्लिक करें मोहम्मद अली जिन्ना के घर 'ज़्यारत रेसिडेंसी' में दाख़िल हो गए और बम फ़ेकने के अलावा फ़ायरिंग भी करने लगे.
इस हमले में वहां मौजूद एक सुरक्षाकर्मी की मौत हो गई.
अधिकारी के अनुसार बम फटने से आग लग गई जिसके कारण इमारत पूरी तरह तबाह हो गई.

धरोहर जलकर ख़ाक

यहां तक की मोहम्मद अली जिन्ना द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली चीज़ें जिन्हें राष्ट्रीय धरोहर का सम्मान हासिल था वे भी पूरी तरह जलकर ख़ाक हो गईं.
ज़्यारत रेसीडेसी,पाक
चरमपंथियों के बम हमले में ये जलकर ख़ाक हो गया.
अधिकारी के अनुसार घर के क़रीब एक लाइब्रेरी भी मौजूद थी हालांकि उसे आग से किसी तरह का नुक़सान नहीं हुआ.
पुलिस के अनुसार हमलावर भागने में कामयाब हो गए और बम निरोधक दस्ते ने चार बमों को निष्क्रिय कर दिया.
बलूचिस्तान की ज़्यारत रेसिडेंसी एक ख़ूबसूरत इलाक़े में बना हुआ पर्यटक स्थल है. मोहम्मद अली जिन्ना अपनी मौत से पहले यहां रहा करते थे.
इस इमारत की तामीर 1892 में की गई थी. तब ब्रितानी अफ़सर छुट्टियों के दौरान यहां रहा करते थे.
1947 में पाकिस्तान बनने के बाद मोहम्मद अली जिन्ना उसके पहले गवर्नर जनरल बने.
1948 में ख़राब स्वास्थ्य के कारण जिन्ना बलूचिस्तान के इसी घर में रहने लगे थे और अपनी ज़िंदगी के आख़िरी दो महीने उन्होंने इसी घर में गुज़ारे थे.
उनकी मौत के बाद पाकिस्तान सरकार ने इस घर को 'क़ायद-ए-आज़म रेसिडेंसी' के नाम से राष्ट्रीय धरोहर घोषित कर दिया गया था. हर साल गर्मियों के मौसम में देश भर से कई पर्यटक इसके दर्शन करने आते हैं.

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