आख़िर क्यों हैं मुज़फ़्फरनगर में तनाव?
शुक्रवार, 6 सितंबर, 2013 को 16:47 IST तक के समाचार
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के
मुज़फ़्फ़रनगर ज़िले में तीन युवकों की हत्या के बाद से सांप्रदायिक तनाव
व्याप्त है. हिंदू और मुसलमान समुदायों के इन युवकों के परिजनों ने शांति
बनाए रखने की अपील की है.
पुलिस के अनुसार धार्मिक स्थलों एवँ घरों में
तोड़फोड़, वाहनों में आगज़नी और लोगों के साथ मारपीट, एक यात्री को ट्रेन
से फेंकने जैसी घटनाओं ने तनाव को और बढ़ा दिया है. पड़ोसी ज़िले शामली में
भी हुई हिंसा में एक व्यक्ति की मौत हुई है.यूपी पुलिस के अतिरिक्त महानिदेशक (क़ानून व्यवस्था) राजकुमार विश्वकर्मा स्वयं मुज़फ़्फ़रनगर में मौजूद थे. उन्होंने कहा, ''हमारी पूरी कोशिश है कि सांप्रदायिक सौहार्द बना रहे. एक घटना हुई थी जो कि पूर्व नियोजित नहीं थी. इसकी प्रतिक्रिया में हुई घटना के बाद जो नफ़रत की भावनाएं पैदा हुईं वे नहीं होनी चाहिए थीं.''
शुक्रवार को यूपी के डीजीपी देव राज नागर भी मुज़फ़्फरनगर पहुँच गए.
सन्नाटा
कवाल गाँव में क्या हुआ था
27 अगस्त को कवाल गाँव के युवक
शाहनवाज़ और पास ही के मलिकपुरा गाँव के युवक गौरव के बीच रास्ते में किसी
बात को लेकर विवाद हुआ. पुलिस के अनुसार कवाल गाँव में दिन में करीब एक बजे
शाहनवाज़ की हत्या हुई जिसके बाद गौरव और सचिन की भी हत्या हो गई.
पुलिस ने दोनों पक्षों की ओर से शिकायत लेकर मामले दर्ज कर लिए हैं. गौरव और सचिन की हत्या के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस का कहना है कि घटना की प्रतिक्रिया में हुई घटनाओं के बाद सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के कारण अभी घटना की पूरी जाँच नहीं हो पाई है. जाँच के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि 27 तारीख की दोपहर कवाल गाँव में क्या हुआ था.
पुलिस ने दोनों पक्षों की ओर से शिकायत लेकर मामले दर्ज कर लिए हैं. गौरव और सचिन की हत्या के मामले में एक व्यक्ति को गिरफ़्तार किया गया है.
पुलिस का कहना है कि घटना की प्रतिक्रिया में हुई घटनाओं के बाद सुरक्षा व्यवस्था बनाए रखने के कारण अभी घटना की पूरी जाँच नहीं हो पाई है. जाँच के बाद ही यह स्पष्ट हो सकेगा कि 27 तारीख की दोपहर कवाल गाँव में क्या हुआ था.
कस्बे जानसठ से करीब तीन किलोमीटर दूर बसे कवाल गाँव की क़रीब पंद्रह हज़ार की आबादी में हिंदू और मुसलमान लगभग बराबर की तादाद में हैं. यहाँ कई जातियों के हिंदू और मुसलमान हमेशा से मिलजुलकर रहते आए हैं. लेकिन अब कवाल गाँव में सन्नाटा पसरा था और बहुत कम ही लोग नज़र आ रहे थे.
सेवानिवृत्त शिक्षक जबर सिंह ने अपना पूरा जीवन यहीं बिताया है. वे मानते हैं कि इस इलाक़े में इतने बुरे हालात कभी नहीं रहे.
निर्मम हत्या
जबर सिंह कहते हैं, ''युवको की निर्ममता से हत्या होने के कारण लोग आक्रोश में हैं, यदि उनकी गोली मारकर हत्या की गई होती तो भी शायद लोग इतने न भड़कते. पुलिस ने पक्षपात करते हुए हिंदू युवकों के परीजनों के ख़िलाफ़ ही एफआईआर दर्ज कर ली. यह अन्याय है.''बहुसंख्यक समुदाय को लग रहा है कि अखिलेश यादव की सरकार उनके साथ नाइंसाफ़ी कर रही है. घटना की जाँच कर रहे तत्कालीन एसएसपी और डीएम के तबादले को भी बहुसंख्यक समाज इसी रूप में देख रहा है.
फ़र्ज़ी वीडियो, विधायक पर केस
एक युवक ने अपने सस्ते चाइनीज़ मोबाइल पर एक वीडियो दिखाते हुए कहा कि देखिए कितनी बेरहमी से दोनों युवकों को मारा गया है. सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट के ज़रिए शेयर किया गया ये वीडियो लोगों के मोबाइल में पहुँच गया और इसे शेयर किया जाने लगा. पुलिस जाँच में फ़र्ज़ी पाए गए इस वीडियो को शेयर करने के लिए एक भाजपा विधायक सहित कई लोगों पर मामला दर्ज किया गया है. हालाँकि युवा ये मानने को तैयार नहीं थे कि ये वीडियो फ़र्ज़ी है.ख़ौफ़
कवाल गाँव की मस्जिद के इमाम क़ारी मोहम्मद औसाफ़ क़ासमी ने आरोप लगाया कि युवकों का अंतिम संस्कार करके लौट रही भीड़ ने 28 अगस्त को धार्मिक स्थलों और घरों में तोड़फोड़ की. ख़ौफ़ में आए मुसलमान अपना घर-बार छोड़कर जा चुके हैं और अब तक नहीं लौटे हैं. पुलिस ने इस हिंसा के मामले में गाँव के पूर्व प्रधान को गिरफ़्तार भी किया है.अपना पूरा जीवन कवाल गाँव में ही बिताने वाले 72 साल के निसार अहमद ने भी पहली बार अपने गाँव में इस तरह का तनाव देखा है.
वे कहते हैं, ''दो लोगों के बीच की इस निजी लड़ाई को बाहरी लोगों के कारण सांप्रदायिक रूप दे दिया गया. युवकों के अंतिम संस्कार के बाद भीड़ शांतिपूर्वक तरीक़े से गुज़र रही थी लेकिन कुछ लोगों ने तोड़फोड़ शुरू कर दी. वे मेरे घर की खिड़की तोड़ रहे थे तब हिंदू समाज के लोगों ने ही उन्हें रोका.''
अपील
हम कवाल से होते हुए मलिकपुरा गाँव गए. मारे गए युवक इसी गाँव के रहने वाले हैं.गौरव के पिता रविंद्र सिंह ने भर्राई आवाज़ में कहा, ''हमारा आम आवाम से कोई झगड़ा नहीं है, हम नहीं चाहते की ख़ूनख़राबा हो या कोई नाहक़ मारा जाए. हमारे बच्चों की लाशें पड़ी थी और हम लोगों से ग़ुस्से पर क़ाबू करने की अपील कर रहे थे. हमने कहा कि जो हमारे साथ होना था हो गया. जो हमारे बच्चे मर गए वे मर गए, अब कहीं और किसी बेगुनाह को मारने-मरवाने से क्या होगा? शांति में ही सबका फ़ायदा है."
सरकारी फ़ैसला?
एफआईआर में मारे गए युवकों के परिजनों का नाम होने पर वे कहते हैं, ''हम यह भरोसा देते हैं कि किसी भी निर्दोष व्यक्ति को गिरफ़्तार नहीं किया जाएगा और जो लोग वारदात में लिप्त थे वे हर हाल में गिरफ़्तार होंगे.''
एडीजी भले ही अधिकारियों के तबादलों को सरकारी फ़ैसला बता रहे हैं, वारदात के बाद हुई हिंसा को हत्याकांड में गिरफ़्तारियाँ न होने की वज़ह मानते हों लेकिन जनता में गुस्सा इसी बात को लेकर है.
बहुसंख्यक समाज में आम भावना यह है कि प्रशासन ने एकतरफ़ा कार्रवाई की है. समूचे ज़िले में हालात तनावपूर्ण हैं और कवाल में हुई घटना की आग पड़ोसी ज़िले शामली तक पहुंच गई हैं जहाँ माहौल मुज़फ़्फरनगर जैसा ही तनावपूर्ण हो गया है.
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