दो मिनट में पास हुआ दागियों को बचाने का बिल
'कोई
जज यह तय नहीं कर सकता है कि कौन चुनाव लड़ने के योग्य है और कौन नहीं
क्योंकि अंतिम निर्णय तो संबंधित मुकदमे पर अंतिम फैसला आने के बाद ही किया
जा सकता है।'
- कपिल सिब्बल, कानून मंत्री
लोकसभा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पलटने के लिए दो संशोधन बिलों को शुक्रवार को आनन फानन में पारित कर दिया। राज्यसभा दोनों बिल पहले ही पारित कर चुकी है।
सांसदों और विधायकों को अयोग्य होने से बचाने के लिए पेश किए गए संसद निरर्हता निवारण संशोधन विधेयक तो बिना किसी चर्चा के ही दो मिनट के अंदर पारित हो गया।
जबकि हिरासत और जेल से भी चुनाव लड़ने का अधिकार बरकरार रखने के लिए पेश लोक प्रतिनिधित्व संशोधन बिल पर बमुश्किल 15 मिनट की चर्चा हुई और इसे मंजूरी दे दी गई। इसके बाद लोकसभा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 10 जुलाई को फैसला दिया था कि सांसद-विधायक दोषी करार दिए जाने के दिन से ही अयोग्य घोषित माने जाएंगे। एक अन्य फैसले में शीर्ष अदालत ने हिरासत और जेल से चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।
इन फैसलों का हालांकि चौतरफा स्वागत हुआ था, मगर सभी दल इसके खिलाफ एकजुट हो गए थे। मालूम हो कि दागियों की अयोग्यता के फैसले पर केंद्र की पुनर्विचार याचिका सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को खारिज कर दी थी, जबकि जेल से चुनाव लड़ने के फैसले पर फिर से विचार करने पर सहमति जताई थी।
लोकसभा में सांसदों को अयोग्य होने से बचाने के लिए पेश किया गया बिल बिना किसी चर्चा के पारित हो गया। हालांकि हिरासत और जेल से चुनाव लड़ने पर रोक संबंधी फैसले को पलटने के लिए पेश किए गए बिल पर करीब 15 मिनट चर्चा हुई।
इस दौरान सभी दलों ने एक स्वर से सुप्रीम कोर्ट के फैसले की निंदा की। कई सदस्यों ने तो सुप्रीम कोर्ट पर हद पार करने का आरोप तक लगा दिया। खुद कानून मंत्री कपिल सिब्बल ने इस फैसले की तीखी आलोचना करते हुए कहा कि अगर अदालत का फैसला गलत है तो संसद का यह कर्तव्य है कि वह अपने संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए आगे आए।
सिब्बल ने कहा कि हिरासत या जेल से चुनाव लड़ने का अधिकार खत्म करने के फैसले का व्यापक दुरुपयोग होने की आशंका थी। राजनीतिक विरोधी किसी को भी ठीक नामांकन के समय आरोप लगाकर हिरासत में भिजवा सकता है और उसे चुनाव लड़ने से वंचित कर सकता है।
किसी ने नहीं किया बिलों का विरोध
बिलों पर चर्चा के दौरान सांसदों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों की तीखी आलोचना की। लेकिन पूरी बहस में एक भी दल के सदस्य ने दोनों बिल में से किसी का भी विरोध नहीं किया।
खुद कानून मंत्री सिब्बल ने दोनों बिलों को जोरदार तरीके से आगे बढ़ाया तो भाजपा के कीर्ति आजाद ने बेहद आक्रामक अंदाज में बिलों का समर्थन किया।
तृणमूल के कल्याण बनर्जी ने कहा कि कई बार अदालतें बिना किसी खास कारण के अति सक्रियता दिखा कर कार्यपालिका और संसद के अधिकारों में हस्तक्षेप करने से नहीं चूकतीं।
बसपा के दारा सिंह ने इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि इससे चुनाव लड़ने के अधिकारों का हनन होने का खतरा बन गया है।
दागियों पर क्या थे सुप्रीम कोर्ट के फैसले
फैसला -1
सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि दो साल की सजा पाए सांसदों, विधायकों को दोषी ठहराए जाने के दिन से ही सदस्यता से अयोग्य माना जाएगा।
फैसला-2
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जेल में बंद या हिरासत में चल रहे व्यक्ति को मतदान का अधिकार नहीं है। मतदान के अधिकार से वैधानिक रूप से वंचित व्यक्ति चुनाव लड़ने का हकदार नहीं है।
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