उत्तराखंड: एक तस्वीर पर टिकी सारी उम्मीद
शुक्रवार, 2 अगस्त, 2013 को 13:26 IST तक के समाचार
उत्तराखंड बाढ़ के बाद वहाँ की
तबाही में फँसी एक महिला की ये तस्वीर अपने आप में सब कुछ बयां कर जाती है-
उनका दर्द, उनकी लाचारी, उनकी बेबसी...इस तस्वीर में छिपे दर्द को बयां
करने के लिए लफ़्ज़ों की ज़रूरत ही नहीं.
21 जुलाई को बद्रीनाथ में बाढ़ के बाद ज़िंदा बचे
लोगों में ये महिला भी थी. ये तस्वीर उनके ज़िंदा होने की गवाही देती है
लेकिन वो आज तक घर नहीं लौटी हैं.चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री का आलम था. तभी दानिश की नज़र इस महिला पर पड़ी जो सैनिक से हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा रही थी कि किसी भी तरह वहाँ से निकाल ले.
"उस दिन मैं सेना के हेलिकॉप्टर से बद्रीनाथ के इस इलाक़े में पहुँचा था. तभी मेरी नज़र इस महिला पर पड़ी. वो बहुत बुरी तरह रो रही थी. बार-बार सैनिक से यही कह रही थी कि मुझे जाने दीजिए. लेकिन वो सैनिक भी इतना ही बेबस था और वो अनुरोध कर रहा था कि वो नहीं लेकर जा सकता. वो बोल रहा था कि मैं कैसे लेकर जाऊँ, मुझे पहले बुज़ुर्गों, ज़ख्मी लोगों को ले जाना है. उसके बाद मैं वहाँ से निकल गया था.इतना कह सकता हूँ कि वो सही सलामत थी और उसे कोई चोट नहीं आई थी.""
दानिश सिद्दीकी, फ़ोटोपत्रकार
आज लगभग एक महीना होने को आया है पर इस महिला का कोई अता-पता नहीं. एक महीने बाद भी ऐसे हज़ारों लोग हैं जो उत्तराखंड गए तो थे लेकिन वापस नहीं लौटे और न ही उनके शव अब तक मिले.
लखनऊ की जिस महिला की तस्वीर की बात शुरु में हमने की थी, उस तस्वीर के पीछे की कहानी जानने के लिए मैं फ़ेसबुक के ज़रिए उन तक पहुंची जिन्होंने ये तस्वीर खींची थी.
दानिश सिद्दीक़ी को वो हालात और वो पल अच्छी तरह याद है जब उन्होंने ये तस्वीर कैमरे में क़ैद की थी.
पेशे से फोटोजर्निस्ट दानिश बताते हैं, "उस दिन मैं सेना के हेलिकॉप्टर से बद्रीनाथ के इस इलाक़े में पहुँचा था. बहुत ही छोटा सा चॉपर था जिसके ज़रिए लोगों को निकाला जा रहा था. तभी मेरी नज़र इस महिला पर पड़ी. वो बहुत बुरी तरह रो रही थी. बार-बार सैनिक से यही कह रही थी कि मुझे जाने दीजिए. लेकिन वो सैनिक भी इतना ही बेबस था और वो अनुरोध कर रहा था कि वो नहीं लेकर जा सकता. वो बोल रहा था कि मैं कैसे लेकर जाऊँ, मुझे पहले बुज़ुर्गों, ज़ख्मी लोगों को ले जाना है. उसके बाद मैं वहाँ से निकल गया था. हाँ इतना कह सकता हूँ कि वो सही सलामत थी और उसे कोई चोट नहीं आई थी."
कहाँ गए वो अपने...
तब से प्रजापति परिवार देहरादून में ही डेरा डाले हुए है. दानिश बताते हैं, "महिला का भाई इस बात को लेकर परेशान हैं कि तस्वीर से साफ़ है कि उसकी बहन बद्रीनाथ में सुरक्षित थी, वहीं से लोगों को हेलिकॉप्टर के ज़रिए निकाला जा रहा था, उसे कोई चोट नहीं आई थी, फिर आख़िर उसके बाद वो ग़ायब कहाँ हो गई."
हमने दानिश के ज़रिए ही परिवारवालों से बात करने की कोशिश की लेकिन इस वक़्त वे बेहद हताश और परेशान हैं.
ये केवल एक परिवार की नहीं बल्कि कई परिवारों की कहानी है क्लिक करें जिनके अपने लापता हैं, -कितने ही ऐसे भाई अपनी बहनों, बच्चे अपने माता-पिता, और बूढ़े बुज़र्ग अपने नाते रिश्तेदारों का इंतज़ार कर रहे हैं.
नोएडा में रहने वाली रुचि के पिता भी उत्तराखंड से लापता हैं. कुछ दिन पहले रुचि ने बीबीसी की वेबसाइट पर एक तस्वीर देखी और उन्हें लगा है कि ये तस्वीर उनके पिता की है.
पिता की तलाश में जुटी रुचि ने बीबीसी में फ़ोन किया. कुछ छान-बीन के बाद मैं सज्जाद हुसैन नाम के उस फ़ोटोग्राफ़र तक पहुँची जिन्होंने ये तस्वीर खींची थी. रूचि और उनकी माँ के मन में फिर से कुछ उम्मीद बंधी.
लेकिन जल्द ही उम्मीद टूट गई. फ़ोटो में वो व्यक्ति रुचि के पिता जैसे तो थे पर रुचि के पिता नहीं.
ऐसे तमाम परिवारवालों के पास न तो अपनों की कोई खोज ख़बर है और न ही उनके लिए यक़ीन कर पाना आसान है कि उनके अपने नहीं रहे.
वहीं कुछ परिवार ऐसे भी हैं जिन्होंने मन कड़ा कर ख़ुद को समझाना शुरु कर दिया है कि शायद उनके अपने कभी नहीं लौटेंगे.
इंतज़ार करती आँखें
बेटे गोरखनाथ कहते हैं कि माँ-बाप के चले जाने की बात स्वीकार करना आसान नहीं. अब उनकी परेशानी ये है कि अगर माता-पिता को मृतक मान भी लिया जाए तो उनके जैसे लोगों को ये नहीं पता चल पा रहा है कि आगे की प्रक्रिया क्या है.
गोरखनाथ कहते हैं, "हमने माता-पिता को काफ़ी ढूँढा. हफ्ता-दस दिन उत्तराखंड में भी रहे. अब अगर हमें मृत्यु प्रमाण पत्र चाहिए तो भी नहीं मिल पा रहा है. हम कहीं भी जाते हैं तो हर काम के लिए मृत्यु प्रमाण पत्र माँगा जा रहा है. हम लोग बहुत परेशान हैं. अगर आपके पास कोई जानकारी हो तो आप ही हमें बता दें."
उत्तराखंड में आई भीषण बाढ़ को पूरा एक महीना गुज़र चुका है. तबाही ने पीछे ऐसे निशान छोड़े हैं जिन्हें मिटने में लंबा अरसा लगेगा.
कुछ बचा है तो बस अपनों का इंतज़ार करती आँखें और मन में एक उम्मीद कि कुछ तो चमत्कार होगा और एक दिन वो लौट आएँगे.
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