ज़रदारी सियासत में न होते तो शतरंज के कास्पारोव होते'
सोमवार, 9 सितंबर, 2013 को 12:15 IST तक के समाचार
आसिफ़ अली ज़रदारी के बारे में
मेरी जितनी भी मालूमात है, वो उनसे गाहे-बगाहे मिलने वाले चंद दोस्तों या
मीडिया वालों की ओर से दी जाने वाली चुनिंदा जानकारी से मिली है.
और इस बुनियाद पर जो तस्वीर बनती है, वो ब्लैक एंड
व्हाइट नहीं बल्कि ग्रे है. और ग्रे तो आपको मालूम ही है कि काले और सफेद
को घोलकर बनता है.आप उन्हें पुश्तैनी रूप से सामंती के खाने में भी नहीं रख सकते हैं. आप उन्हें बहुत पढ़ा-लिखा या कोई किताबी कीड़ा या किताब या हिसाब से चलने वाला भी नहीं मान सकते हैं.
वो कोई करिश्माई या भाषाई करतब बाज़ भी नहीं हैं. उनका वैश्विक और सार्वभौमिक विज़न भी बहुत सतही है. अलबत्ता राजनीतिक संयोग और हादसों वाली तालीम ज़रूर है. इसलिए चिर-परिचित राजनेता के खाने में भी वो फिट नहीं दिखाई देते हैं.
अलबत्ता, मौजूदा व्यवस्था की कमजोरी और ताक़त को राजनेताओं की मौजूदा पीढ़ी में शायद ही कोई उनसे बेहतर समझता हो. वो राजनीति में न होते तो शायद शतरंज के गैरी कास्पारोव होते.
'किस्मत के धनी'
कुछ लोग चाहें तो आसिफ़ अली ज़रदारी को किस्मत का धनी कह सकते हैं.
आप कुछ भी कह लें लेकिन इसका क्या करें कि मोहम्मद अली जिन्नाह से लेकर आज तक जितने भी सिविलियन राष्ट्राध्यक्ष आए उनमें फज़ल इलाही चौधरी के बाद ज़रदारी दूसरे निर्वाचित राष्ट्रपति हैं, जिन्होंने निर्धारित संवैधानिक कार्यकाल पूरा किया. (बल्कि राष्ट्रपति फ़ज़ल इलाही चौधरी तो अपने संवैधानिक कार्यकाल यानी 14 अगस्त 1973 से 13 अगस्त 1978 के बाद एक महीना दो दिन ज़्यादा यानी 16 सितंबर 1978 तक राष्ट्रपति रहे.)
इस लिहाज़ से आसिफ़ अली ज़रदारी पहले राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपने अधिकार किसी जनरल या पिछले दरवाज़े से आने वाले किसी सिविलियन को नहीं सौंपे बल्कि वो एक और निर्वाचित राष्ट्रपति को पद सौंपकर दिन के उजाले में विदा हुए.
क्यों ख़ास हैं ज़रदारी
जितने भी फौजी या सिविलियन, निर्वाचित या अनिर्वाचित गवर्नर जनरल या राष्ट्रपति आए, वो अपने अधिकारों से या तो असंतुष्ट रहे या उनमें वृद्धि की कोशिश करते रहे.आसिफ़ अली ज़रदारी ने जब राष्ट्रपति पद संभाला, तो ये अहम अधिकारों से लैस और ताक़तवर पद था. लेकिन पहली बार किसी राष्ट्रपति ने अपने अधिकार अपनी मर्ज़ी से संसद और प्रधानमंत्री को सौंपे और अपने पद को सिर्फ सांकेतिक राष्ट्राध्यक्ष तक सीमित कर दिया.
यही नहीं, बहुत से संघीय अधिकारियों को प्रांतीय सरकारों को सौंपकर संवैधानिक प्रक्रिया को प्रोत्साहन दिया गया और इस तजुर्बे की क़लम एक ऐसे समाज में लगाई गई है, जहां कोई किसी के लिए दो फुट क्या दो इंज ज़मीन बड़ी मुश्किल से खुशी-खुशी छोड़ने को तैयार होता है.
रास्ता भी क्या है
इन पांच सालों में विपक्ष भी आमतौर पर बचपने से लड़कपन में दाखिल होता नज़र आया. सकारात्मक और नकारात्मक, सार्थक और निरर्थक संवाद के बावजूद किसी भी अहम राजनीतिक दल ने व्यवस्था को पटरी से उतारने की जानबूझकर कोशिश नहीं की. इसका फल सिविलयिन से सिविलियन को सत्ता सौंपे जाने के रूप में सबके सामने है.इसके अलावा पहली बार उपचुनाव में जो भी हार-जीत हुई, वो ख़ालिस सरकारी बदमाशी के बजाय वोट के आधार पर हुई और सबने उपचुनाव के परिणामों को आम चुनावों के मुकाबले ज़्यादा खुशी-खुशी स्वीकार किया.
हिमालय से ऊंची आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी और सामाजिक समस्याएं और स्कैंडल जितने कल थे, आज भी उतने ही हैं. शायद आने वाले दिनों में और भी ज़्यादा हो जाएं लेकिन बुनियादी लोकतांत्रिक ढांचे पर अंदर या बाहर से कोई नई चोट न लगे तो जख्मों पर खुरंड आना शुरू हो जाएगा.
वैसे भी आज की तारीख में खुश उम्मीदी के सिवाय रास्ता क्या है!!!
पाकिस्तान: राष्ट्रपति पद से जरदारी की विदाई
पाकिस्तान में राष्ट्रपति आसिफ
अली ज़रदारी का कार्यकाल रविवार को समाप्त हो गया और उन्हें गार्ड ऑफ ऑनर
के साथ राष्ट्रपति भवन से विदा किया गया.
इससे पहले ज़रदारी ने शनिवार को राष्ट्रपति भवन में अपने कर्मचारियों को अपनी तरफ से विदाई भोज दिया.ज़रदारी ने कहा कि उन्होंने सभी फैसले देश के हित में किए और अपने अधिकार संसद को सौंपे.
'नहीं बनूंगा प्रधानमंत्री'
पाकिस्तान के 67 साल के इतिहास में ज़रदारी पहले ऐसे राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपना पांच साल का राष्ट्रपति का कार्यकाल पूरा किया और उनकी जगह एक निर्वाचित राष्ट्रपति पद संभालेंगे.ममनून हुसैन ज़रदारी का स्थान लेंगे.
"मैं प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं करूंगा. मेरे ख्याल से पार्टी चलाना प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण है."
आसिफ अली जरदारी, पाकिस्तानी राष्ट्रपति
इस दौरान जहां पाकिस्तान में चरमपंथी हिंसा बराबर चुनौती बनी रही.
वहीं एबटाबाद शहर में अल कायदा नेता ओसामा बिन लादेन के अमरीकी सैन्य अभियान में मारे जाने के बाद अमरीका और अफगानिस्तान से पाकिस्तान के रिश्ते तनावपूर्ण हुए.
हाल ही में पाकिस्तान में आम चुनाव हुए जिनमें ज़रदारी की पाकिस्तान पीपल्स पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा और पीएमएल (एन) के नेता नवाज शरीफ ने तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री का पद संभाला.
जरदारी एक इंटरव्यू में कह चुके हैं, “मैं प्रधानमंत्री बनने की कोशिश नहीं करूंगा. मेरे ख्याल से पार्टी चलाना प्रधानमंत्री बनने से ज्यादा महत्वपूर्ण है.”
राष्ट्रपति पद से हटने के बाद आसिफ अली जरदारी के खिलाफ दर्ज भ्रष्टाचार संबंधी उन मुकदमों के फिर से खुलने की संभावना है जिनमें बतौर राष्ट्रपति उन्हें मिले संवैधानिक संरक्षण के कारण कोई अदालती कार्रवाई नहीं सकी थी.
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