Monday, 9 September 2013

मुजफ्फरनगर: भीड़ ने मासूमों को भी नहीं बख्शा

मुजफ्फरनगर: भीड़ ने मासूमों को भी नहीं बख्शा

children of muzaffarnagar riot

मुजफ्फरनगर में मासूम चीखते रहे और मानवता शर्मसार होती रही। उन्माद में अंधी भीड़ ने मासूमियत को भी नहीं बख्शा।

यह कैसी धर्म की लड़ाई है, नौनिहालों को नहीं मालूम? दहशत से सहमी नन्हीं आंखों ने पिता का खून देखा, मां अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझ रही है।



भड़की हिंसा में उपद्रवी हैवान हो गए हैं। बलवाइयों के हमले में जिंदगियां दफन होती गईं। एक-दूसरे का लहू बहाने में उपद्रवी संवेदन शून्य हो गए। शहर हो या गांव, खूनी टकराव में बचपन भी झुलस गया है। मासूमों की आंखों में हैवानियत का खौफ है।

लहूलुहान बच्चों को देख मानवता रो रही है। जिला चिकित्सालय की इमरजेंसी में पहुंचे मृतकों और घायलों में बच्चों की संख्या भी कम नहीं है। शाहपुर क्षेत्र से लाई गई तीन साल की बालिका घायल है। आठ साल का भाई, छोटी बहन भी साथ है। घायल मां बेहोश पड़ी है। नहीं मालूम बचेगी या नहीं। बाप का साया बलवाइयों ने सिर से उठा दिया है।

एकल परिवारों पर जहां भी हमले हुए हैं, वहां मची भगदड़ में मासूमों को कोई संभाल नहीं पाया है। मृतक परिजनों के साथ अफसरों ने मासूमों को भी जिला चिकित्सालय में पहुंचा दिया है।

बच्चों को यह नहीं पता, कौन से मजहब की लड़ाई में आदमी-आदमी को मार रहा है। उन्माद की खूनी हिंसा ने उनके बचपन की खुशियां ही नहीं उजाड़ी, बल्कि पिता का साया ही छीन लिया।

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