मायावती के राज में नहीं हुए सांप्रदायिक दंगे
शपथग्रहण के चंद दिनों बाद ही सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस मारकंडेय काटजू ने मीडिया से ताकीद की, ‘अखिलेश युवा हैं, विदेश में पढ़े हैं, दो साल तक उनकी आलोचना न करिए। उन्हें काम करने का मौका दीजिए।’
उन दो सालों में डेढ़ साल बीतने को आए, इस बीच अखिलेश की कैबिनेट पर भ्रष्टाचार के दाग तो नहीं दिखे लेकिन भयमुक्त शासन का वादा छलावा ही साबित हुआ।
अखिलेश के कमान संभालने के बाद से ही प्रदेश सांप्रदायिक दंगों की आग में झुलस रहा है।
कोसीकलां, बरेली, फैजाबाद, प्रतापगढ़, गाजियाबाद, संभल, बिजनौर और इलाहाबाद के दंगे अखिलेश की प्रशासनिक नाकामी के सबूत रहे।
दंगों की आग में झुलस रहे मुजफ्फरनगर ने अखिलेश की काबिलियत पर ही सवाल खड़ा कर दिया है।
मुजफ्फरनगर में हो रहे है दंगों में अब तक 29 मौतें हो चुकी है। मायावती ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने की मांग की है। मायावती ने आरोप लगाया है कि अखिलेश राज में अब तक 100 से ज्यादा दंगे हो चुके हैं।
मायावती के राज में नहीं हुए थे प्रशासनिक दंगे
भयमुक्त शासन का वादा कर सत्ता में आई अखिलेश सरकार सांप्रदायिक दंगे रोकने मे मामले में मायावती सरकार के मुकाबले फिसड्डी साबित हुई है।
भट्टा-पारसौल जैसी झड़पों को छोड़ दें तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए यह एक कड़वी सच्चाई है कि मायावती के शासन में सांप्रदायिक दंगे नहीं हुए। मायावती के शासन में सांप्रादायिक दंगे रोकने का दारोमदार जिले के अधिकारियों पर था।
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक मायावती ने साप्रदायिक दंगों के लिए सीधे जिलाधिकारी को जिम्मेदार मानने का निर्देश दे रखा था।
मायाराज में दो गुटों में और पुलिस के साथ झड़प के मामले आए लेकिन उन्हें साप्रदायिक रंग नहीं लेने दिया गया।
मायाराज में आया बाबरी मस्जिद बंटवारे का फैसला
उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट का बाबरी मस्जिद-राम मंदिर की विवादित भूमि को तीन हिस्सों में बांटने का ऐतिहासिक फैसला मायावती के राज में ही आया था।
मामले की संवेदनशीलता के कारण फैसले की तारीख से पहले ही प्रदेश में तनावपूर्ण स्थिति बन गई थी।
हालांकि मायावती ने इन हालात में भी प्रशासनिक मुस्तैदी बनाए रखी थी। प्रदेश के संवेदनशील जिलों में भारी संख्या में पुलिस बल की तैनाती की गई थी। नतीजतन फैसला आने का बाद भी किसी भी तरह की अप्रिय घटना नहीं घटी।
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